मिली जिससे नज़र वो शख़्स दीवाना हुआ तेरा
जो
दिल आया तेरे आगे वो नज़राना हुआ तेरा
उठी
तेरी नज़र तो खुल गए दो द्वार जन्नत के
झुकी
तेरी ऩजर तो बंद मयखाना हुआ तेरा
तेरे
गेसू हुए बादल, तेरी बिन्दिया हुई बिजली
हुई
जो रिमझिमी बारिश तो मुस्काना हुआ तेरा
तेरी
ख़ुशबू से ही मदहोश है हर फूल गुलशन का
नदी
मुड़ती है जब कोई, तो बल खाना हुआ तेरा
तेरी
अँगड़ाइयों से ही खि़ज़ां में भी बहार आयी
छुपा
जब चांद बादल में तो शर्माना हुआ तेरा
शमा
मेरी है तो वो दूसरों को रौशनी क्यूं दे
बता
मेरे सिवा भी कोई परवाना हुआ तेरा
मिलाने
की नज़र ‘’गौतम’’ ने तुमसे की थी गुस्ताख़ी
तो ले लीजे मेरा दिल, ये ही हर्जा़ना हुआ तेरा
©शशि कान्त सिंह "गौतम"