ग़ज़ल
लबों पे सबके है फरियाद, बहुत अच्छा है
हर ओर दंगे और फसाद, बहुत अच्छा है
सुना है सोच भली रख्खो तो भला होगा
मैं दे रहा हूँ इसकी दाद, बहुत अच्छा है
क़फ़स में घुटता है दम कुछ नहीं है खाने को
यही सुकूं है कि सैय्याद बहुत अच्छा है
जला के मार दी बेटी, चलो ये चलता है
है खुशनसीबी कि दामाद बहुत अच्छा है
अमन के ज़लवे ज़रा मेरी बस्ती में देखो
है क़ब्रगाह, पर आबाद बहुत अच्छा है
उगे चमन में जो बिरवे, जड़ों में उनकी तुम
दिए जो नफ़रतों की खाद, बहुत अच्छा है
सिला था ज़ख्म के होठों को तूने चारागर
बने वो आज ज़हरबाद, बहुत अच्छा है
नहीं थे तुम तो पुरसकून ये फि़जांएं थीं
दिखे हो इतने दिनों बाद, बहुत अच्छा है
निकल रहे हैं सभी वादे खोखले-झूठे
कहेंगे लोग मुर्दाबाद, बहुत अच्छा है
-- शशिकान्त सिंह