ग़ज़ल
मिली जिससे नज़र वो शख़्स दीवाना हुआ तेरा
जो
दिल आया तेरे आगे वो नज़राना हुआ तेरा
उठी
तेरी नज़र तो खुल गए दो द्वार जन्नत के
झुकी
तेरी ऩजर तो बंद मयखाना हुआ तेरा
तेरे
गेसू हुए बादल, तेरी बिन्दिया हुई बिजली
हुई
जो रिमझिमी बारिश तो मुस्काना हुआ तेरा
तेरी
ख़ुशबू से ही मदहोश है हर फूल गुलशन का
नदी
मुड़ती है जब कोई, तो बल खाना हुआ तेरा
तेरी
अँगड़ाइयों से ही खि़ज़ां में भी बहार आयी
छुपा
जब चांद बादल में तो शर्माना हुआ तेरा
शमा
मेरी है तो वो दूसरों को रौशनी क्यूं दे
बता
मेरे सिवा भी कोई परवाना हुआ तेरा
मिलाने
की नज़र ‘’गौतम’’ ने तुमसे की थी गुस्ताख़ी
तो
ले लीजे मेरा दिल, ये ही हर्जा़ना हुआ
तेरा
--- ©शशि कान्त सिंह
ग़ज़ल
वजह
कुछ और थी उनके क़रीब आने की
वर्ना
उनको क्या पड़ी थी मुझे जगाने की
लिपट
के बोले अंधेरों से बहुत डरती हूँ
छोडि़ए-
छोडि़ए, ये बातें हैं बहाने की
बात
संजीदगी से कहते तो यकीं होता
बात
कहते क्या ज़रूरत थी मुस्कुराने की
चलो
अच्छा कि खु़द रूठे, खुद मनाने लगे
वर्ना
मुझको तो है आदत ही भूल जाने की
इस
मुहब्बत में हैं आते कुछ ऐसे पल “गौतम”
लफ़्ज
मिलते नहीं उनको जुबां पे लाने की
मैं
शराबी नहीं हूँ ये है मुहब्बत का नशा
बात
करते हुए आदत है झूम जाने की
वगैर
इश्क़ अधूरी है जि़ंदगी “गौतम”
यही है राह ख़ुदा के क़रीब जाने की
--- ©शशिकान्त सिंह
ग़ज़ल
जि़ंदगी
अपनी कहां गुजरी जि़ंदगी की तरह
चंद
लमहे थे हंसीं बाक़ी खुदकुशी की तरह
छुपाके
दिल में भला कैसे रखोगे मुझको
मिज़ाज
अपना है बेइंतहा खुशी की तरह
जी
में आता है कि दुनिया को इक ग़ज़ल कर दें
काश
होती ये क़लम जादूई छड़ी की तरह
जी
हां, बन सकती है ये धरती भी जन्नत इक
दिन
आदमी
सीख ले गर जीना आदमी की तरह
इससे
ज़्यादा हसीन मौत भला क्या होगी
किसी
को चाहना और रहना अजनबी की तरह
ये
जि़ंदगी की घड़ी बंद हो गयी होती
तुम्हारा
प्यार मगर इसमें बैटरी की तरह
यूँ
तो दुनिया में हज़ारों तरह के रिश्ते हैं
मगर
नहीं है कोई रिश्ता दोस्ती की तरह
--- ©शशिकान्त सिंह
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