रंग-बिरंगे आंसू
तुलसीदास जी ने लिखा है कि ‘‘धीरज,
धरम, मित्र अरु नारी, आपतकाल परखिए चारी’’। इससे मेरे मन में जिज्ञासा
हुई कि अगर सारे ही रिश्तों को परखना हो तो किस कसौटी का प्रयोग किया जाए। जहां तक
मित्र और नारी की बात है, तो आपको किसी आपातकाल का इंतजार करने की जरूरत नहीं है, अपने
मित्र और अपनी नारी को कुछ समय एकांत में छोड़ दें तो सबसे पहले तो आपके धीरज की ही
परीक्षा हो जाएगी। एकांत के कारण उन दोनों में जो भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तन होंगे,
उसे देखकर आपके मन में जो विचार आएंगे वही आपका धर्म होगा। यह कविता मैंने मजा़क में
लिखनी शुरू की थी; लेकिन जैसे-जैसे मैं आगे बढ़ता गया, हास्य रस, करूण रस में परिवर्तित
होता गया। सालों के प्रयास के बाद यह रचना पूरी हुई किन्तु यह अपने जन्म से ही
विवादों के घेरे में आ गयी। मित्र कहने लगे कि मैंने मित्रों के साथ न्याय नहीं
किया है तो कई रिश्तेदारों का विचार था कि मैंने इस-उस रिश्ते के साथ न्याय
नहीं किया है।
मेरी एक महिला मित्र ने तो यहां तक कह दिया कि “आपने सिर्फ
Inherited relations के साथ न्याय किया है, Acquired relations के साथ सरासर बेइमानी की है..”। सच पूछिए तो मैं आजतक यह नहीं समझ पाया कि क्या सचमुच
मैंने किसी रिश्ते के साथ बेईमानी की है। इस कविता से कई मंचों पर मेरी भावनात्मक
कमजोरी भी उजागर हो गयी। कुछ रिश्तों के आंसुओं का वर्णन करने से पहले ही मेरा कंठ
रूंध गया और मैं फूट-फूटकर रो पड़ा। ऐसा मेरे साथ एक बार नहीं, तीन-तीन बार हुआ।
फिर झल्लाकर मैंने इस कविता को दफ़न ही कर दिया। मेरे बड़े पुराने मित्र श्री नीरज
सैनी, जो आजकल भारतीय दूतावास, मस्कट, ओमान में तैनात हैं और इस कविता को एकबार
सुन चुके हैं, कल इस कविता की फर्माइश कर बैठे। अब इस कविता का ओरिजिनल ड्राफ्ट
तक मेरे पास नहीं है। आज अपनी स्मृति के आधार पर, दशकों बाद इस कविता को पुन:
टाइप करके आपकी अदालत में पेश कर रहा हूँ। आप लोग खुद फैसला करें कि मैंने किस रिश्ते
के साथ न्याय और किसके साथ बेईमानी की है।
रंग-बिरंगे आंसू
एक युवक की मौत पर शोकाकुल हैं लोग
कुछ तो दिल से रो रहे, कुछ करते हैं ढोंग
कुछ करते हैं ढोंग मित्र, भाई, और जीजा
दादा, बुआ, पिता, मां, पत्नी और भतीजा
उसके शव पर गिरते रंग-बिरंगे आंसू
किस आंसू का क्या मतलब, देखें जिज्ञासू।।
मित्र
कर्ज दिया यह सोचकर, कर देगा भुगतान
कर्ज चुकाया भी नहीं, चला गया बेइमान
चला गया बेइमान, न कोई लिखा-पढ़ी की
इसको कर्जा देकर मैंने भूल बड़ी की
मरकर यह कम्बख्त़ कर गया मेरा घाटा
जी करता है मरने पर भी मारूं चाटा।।
पत्नी
मेरे साथ लगा गए फेरे पूरे सात
सात साल पूरे नहीं, छोड़ गए तुम साथ
छोड़ गए तुम साथ, कहूं मैं डरते-डरते
मरना था, तो बीमा तो करवा कर मरते
सुख के बदले तुमने मुझको दी है पीड़ा
जा निर्मोही घोर नर्क में बनकर कीड़ा।।
भाई
तू मेरा यंगर ब्रदर, रहा बहुत शैतान
सदा तिरस्कृत मैं रहा, तेरा ही था मान
तेरा ही था मान, मैं सोचूं लेटे-लेटे
कैसे तेरी शक्ल़ पा गए मेरे बेटे ?
मरा छोड़कर वारिस, सांप हृदय पर लोटा
अगर कुंवारा मरता तो मैं दिल से रोता।।
भाभी
शादी मेरी बहन से, किया नहीं नादान
नागिन से शादी हुई, जाने ही थे प्रान
जाने ही थे प्रान, यही उपकार किया था
मेरे बच्चों को तू सच्चा प्यार किया था
अब देवरानी जी की गुम है सिट्टी-पिट्टी
खुशी और ग़म दोनों मुझको फिफ्टी फिफ्टी।।
जीजा
कहता रहता था यही, सबसे बारम्बार
जीजाजी को कार दूं, और बहन को हार
और बहन को हार, अगर जन्मेगा बेटा
मेरा क्रीमी स्वप्न हो गया है सेपरेटा
मरकर इसने मेरे हक़ पर डाका डाला
बेटा जन्मा नहीं, मर गया पहले साला!!
बहन
कर्मवती को छोड़कर, गया हुमायूं भाग
सिन्दुर भाभी का मिटा, मांग भर गया आग
मांग भर गया आग, भाग गुड़िया का फूटा
ये मत सोच बहन-भाई का रिश्ता टूटा
खाती हूँ मैं कसम ख़ुदा है इसका साखी
आती हूँ मैं स्वर्ग हाथ में लेकर राखी।।
बुआ
अपने हाथों से तुझे पाला मैंने लाल
तेरी मां से भी बुरा, हुआ बुआ का हाल
हुआ बुआ का हाल, मृत्यु ने तुम्हें समेटा
तुझे छोड़ दे, ले जाए वह मेरा बेटा
यम का पत्थर हृदय हाय क्यों नहीं पसीजा?
बुआ-पिंजरा तोड़, ले गया सुआ भतीजा।।
माँ
बिस्तर तो गीला किया बचपन में दिनरात
आंखें गीली कर गया, कैसे सहूं ये घात
कैसे सहूं ये घात, दूध का कर्ज चुकाते
माँ की अर्थी को तुम कंधा तो दे जाते
टूटी मेरी कमर झुलाते तुझको पलना
ममता में क्या कमी हुई जो रूठा ललना?
दादा
इसी गोद में तुम पले, और तुम्हारा बाप
बदले में तुम दे गए मुझको ये संताप ?
मुझको ये संताप, कि चश्मा, घड़ी हमारी
खेल-खेल में तोड़ी कितनी छड़ी हमारी
मैं ज़र्ज़र, लाचार, अपाहिज, बूढ़ा, अंधा
कमर तोड़कर मांग रहे हो मुझसे कंधा?
पिता
बचपन में चलते रहे पकड़े मेरा हाथ
बारी आयी जब मेरी, छोड़ गए तुम साथ?
छोड़ गए तुम साथ, ये अक्सर हो जाता था
आकर मेरे बिस्तर पर तू सो जाता था
आज हिसाब-किताब बराबर हो जाएगा
बूढ़ा पिता चिता पर तेरी सो जाएगा!
-- शशिकान्त सिंह