Sunday, 31 August 2025

 30 Aug, 25, Indiabulls Greens

दुनिया कहे तो कहने दो, मुझको गिला नहीं

इतना मुझे यकीं है कि वो बेवफ़ा नहीं


उनसे मिले जरूर थे हम, फिर भी अर्ज़ है 

वो चंद वाक़िए थे, कोई सिलसिला नहीं


दिल में मेरे जो बात थी, लब तक न आ सकी 

कैसे कहूँ कि हाल-ए-दिल उसने सुना नहीं 


ख्वाबों में मेरे आते हैं, फिर भी सनद रहे

मैं मुंतज़िर हूं जिनका उन्हें ही पता नहीं


ख़्वाबों के तिनकों से तो नहीं बनता आशियां

नादानियां थीं मेरी, ये उनकी ख़ता नहीं


लगने न दूंगा उनपे मैं इल्ज़ाम इश्क़ का 

ये दिल कुसूरवार है, उनकी अदा नहीं


होता नहीं मिलन कभी धरती से चांद का  

यूं रू-ब-रू गुज़रने का हक़ भी बुरा नहीं

                          © शशि कान्त सिंह

Saturday, 30 August 2025

भला तक़दीर में ऐसा लिखा क्या है ख़ुदा मेरी...

 6 दिसम्बर, 1999, नई दिल्ली

भला तक़दीर में ऐसा लिखा क्या है ख़ुदा मेरी

सज़ा कर के मुक़र्रर खोजते हैं वो ख़ता मेरी

शहर में आजकल चर्चें है तेरी बेवफ़ाई के

तेरी इस बेवफ़ाई से निखरती है वफ़ा मेरी

तेरी ज़ुल्फ़ों के बादल एक दिन इस दिल पे बरसेंगे

कभी तो रंग लाएगी तहे-दिल की दुआ मेरी

तेरी राहों में बिछते फूल, कांटे मेरी राहों में

तेरी तक़दीर से ऐ दोस्त क़िस्मत है जुदा मेरी

कहाँ हूँ, कौन हूँ, क्या हूँ, नहीं कुछ याद अब मुझको

सुनूँगा बाद में तेरी, मुझे पहले सुना मेरी

ये आईना सदा मुझको मेरा चेहरा दिखाता है

कभी असली भी सूरत आईने, मुझको दिखा मेरी

ज़माना गर खफ़ा हो तो चलो इसकी वजह भी है

भला किस बात पर क़िस्मत हुई मुझसे ख़फ़ा मेरी

हज़ारों जाल पड़ते हैं मेरी इस दिल की मछली पर

बचा ले मेरे दिल की आबरू, ऐ दिलरूबा मेरी

बियाबाँ में भला “गौतम” किसी की कौन सुनता है

कि चट्टानों से टकरा लौट आती है सदा मेरी

                                 --- ©शशि कान्त सिंह

Monday, 25 August 2025

छोटी ना समझो हमको पिया ...

 20 जून, 1980, सरौनी, जौनपुर 

सतसइया के दोहरे, ज्यों नाविक के तीर। 

देखन में छोटे लगे, घाव करें गंभीर।। 

डांग डिंग डांग डिंग डांग, डिंगडां डिंगडां - 4


छोटी ना समझो हमको पिया

डांग डिंग डांग डिंग डांग, डिंगडां डिंगडां 

छोटी ना समझो हमको पिया 

डांग डिंग डांग डिंग डांग, डिंगडां डिंगडां 

मेले में सब जैसे झूले हिंडोला

डांग डिंग डांग डिंग डांग, डिंगडां डिंगडां 

सावन में सब जैसे झूले हैं झूला 

डांग डिंग डांग डिंग डांग, डिंगडां डिंगडां 

मेले में सब जैसे झूले हिंडोला

सावन में सब जैसे झूले हैं झूला 

वैसे झूला दूँगी, ढिनचक, ढिनचक, ढिनचक

वैसे झूला दूँगी तुमको पिया

छोटी ना समझो हमको पिया


पुरवा में लहराए फूलों की क्यारी

आँधी में हिलती है अमवा की डारी

वैसे हिला दूंगी तुमको पिया 

छोटी ना समझो हमको पिया


गोदिया में गोरी जो बच्चा खिलाए

छतिया लगाके जो उसको सुलाए

वैसे सुला दूंगी तुमको पिया

छोटी ना समझो हमको पिया 


गर्मी के छूते घी ज्यों पिघलता

घी जो पिघलकर के थाली में गिरता

 वैसे पिघलता दूंगी तुमको पिया

छोटी ना समझो हमको पिया 


कहने को बाकी है कितनी है बतिया

पर बातों में आज बीते ना रतिया

बुझो तो क्या दूंगी तुमको पिया

छोटी ना समझो हमको पिया 

             --- ©शशि कान्त सिंह

छोड़ी दुनिया की रीत...

छोड़ी दुनिया की रीत, डडम डम डडम डम

मैं ने जोड़ी तुझसे प्रीत, डडम डम डडम डम

छोड़ी दुनिया की रीत, मैं ने जोड़ी तुझसे प्रीत,

तुझे मन का मीत बनाया, कि तू मुझे प्यारा लगे


मीरा बन के जग छोड़ी, अपनों से मुँह मोड़ी

तुझे अपना श्याम बनाया कि तू मुझे प्यारा लगे ।।


मैं हूँ प्रेम दीवानी, ऊपर से ये रुत मस्तानी

तू मुझको समझ ना पराया कि तू मुझे प्यारा लगे ।।


मैं हूँ जोगन तू है जोगी, तू है वैद्य मैं हूँ रोगी

तूने रोग ना मेरा बताया कि तू मुझे प्यारा लगे ।।


तेरी राहों में खड़ी हूँ तेरे दर पे पड़ी हूँ

तूने फिर भी गले ना लगाया, कि तू मुझे प्यारा लगे ।।

 

अपनी जान भी दे दूँगी, जाके काशी करवट लूँगी

गर तूने ना अपना बनाया कि तू मुझे प्यारा लगे।।

                               --- ©शशि कान्त सिंह

पुरवइया ने पनघट पे ...

 23 मार्च, 1978, वटवृक्ष, सरौनी 

पुरवइया ने, डडम डम डडम डम - 2 

पुरवइया ने पनघट पे छेड़ी सरगम 

बजी तेरी पायलिया छम-छम-छम - 2

छम-छम-छम, छम-छम-छम, 

छम-छम-छम, छम-छम-छम,

छम-छम-छम, छम-छम-छम, 

छम-छम-छम, छम- छम-छम,

तेरी जुल्मी अदाओं ने ढाया सितम

मुफ़्त में जाँ गंवायी रे लुट गए हम

पुरवइया ने पनघट पे छेड़ी सरगम 

बजी तेरी पायलिया छम-छम-छम - 2


तेरी अलकों से मौसम ने अँगड़ाई ली- 2 

तेरी पलकों ने रूत में शरारत भरी 

तेरी बिंदिया ने, डडम डम डडम डम

तेरी बिंदिया ने नींदिया उड़ाई सनम 

 बजी तेरी पायलिया छम-छम-छम

पुरवइया ने पनघट पे छेड़ी सरगम 

बजी तेरी पायलिया छम-छम-छम।।


तेरे ख़्वाबों में डूबा हुआ हूँ दिन-रैन

तेरे कजरारे नैनों ने छीना है चैन

तेरे होंठ हैं गुलाब, हुआ भौंरे को भरम

बजी तेरी पायलिया छम-छम-छम।।


तुम्हें इतना बताना तो ज़रूरी है

तेरे बिना मेरी ज़िंदगी अधूरी है

मैं हूँ रात का मुसाफिर तू है चाँद पूनम

बजी तेरी पायलिया छम-छम-छम।।

                --- ©शशि कान्त सिंह

बचपन की कुछ अदाएँ...

21 मार्च, 1978, वट वृक्ष, गोमती, सरौनी 

बचपन की कुछ अदाएँ, यौवन का कुछ निखार

डम डमडम डमडमडम, डम डमडम डमडमडम - 4 

डमक डमक डम 

बचपन की कुछ अदाएँ, यौवन का कुछ निखार 

बोलो करूँ तुम्हारे, किस रूप को मैं प्यार।।


चँदा सा प्यारा बचपन, बचपन, 

चँदा सा प्यारा बचपन-2

चँदा सा प्यारा बचपन, रुख़्सत सा हो रहा 

सूरज सा तेज यौवन, यौवन, 

सूरज सा तेज यौवन - 2

सूरज सा तेज यौवन, दस्तक सा दे रहा

दो नूर के मिलन से, दमके तेरे रुख़सार 

बोलो करूँ तुम्हारे किस रूप को मैं प्यार।।


महताब-ओ-आफ़ताब का सँगम है तेरा रूप

चाँदी सी थोड़ी चाँदनी, सोने सी थोड़ी धूप

आते जो देखा तुमको, शरमा गयी बहार

बोलो करूँ तुम्हारे किस रूप को मैं प्यार।।


बिजली सी चमके बिंदिया तेरी 

बिजली सी चमके डमक ढिन - 2

बिजली सी चमके बिंदिया तेरी, बादल से काले बाल

मन मोर सा मचल उठा, पूछो ना दिल का हाल

उम्मीद में हूँ कब गिरे, रस की मधुर फुहार

बोलो करूँ तुम्हारे किस रूप को मैं प्यार।।


तेरि हंसिनी सी चाल है, हिरनी सी तेरी आँखें

रसवंती तेरे होंठ हैं, नारंगी की दों फाँकें

इक रूप का शिकारी, ख़ुद हो गया शिकार

बोलो करूँ तुम्हारे किस रूप को मैं प्यार।।

                      --- ©शशि कान्त सिंह

आपकी क़सम...

 13 दिसम्बर, 2015, नैनीताल

रौंद के आएँ है कितनी मुश्किलें और अड़चनें 

घोल दें अब भी फ़ज़ाओं में दिलों की धड़कनें

छू दें सूखी शाख़ को तो गुल लगेंगे महकनें 

आहनी ज़ंजीर भी चटका दें ये क़दम

आपकी क़सम, आपकी क़सम ! 


उम्र के पलड़ों में ना तौलो दिली जज्ब़ात को 

अब भी लिख देंगे लहू से अपने दिल की बात को 

बर्फ़ में भर दें हरारत, लू से भर दें रात को 

आशियाँ फिर से बना डालें, है वो दमख़म 

आपकी क़सम, आपकी क़सम !


दे दो तुम आँचल से अपने, चाँद को कुछ चाँदनी 

जुगनुओं को अपनी पेशानी से थोड़ी रोशनी 

रात को गुलज़ार कर दो, दिन को कर दो शबनमी 

ये ज़माले-हुस्न हो सकता ज़रा ना कम

आपकी क़सम, आपकी क़सम !


फूलों के होंठों पर लिख दूँ वो इनायत आपकी 

गीता के कुछ बोल, कुछ आयत क़लामे-पाक़ की

कुछ मेरी नादानियाँ औ कुछ शरारत आपकी

आने वाली नस्लों पे भी कर दें कुछ करम 

आपकी क़सम, आपकी क़सम ! 


वक्त की इन वादियों में जब फ़ना हो जाएँगे

रेत के ज़र्रों की माफिक ख़ाक में मिल जाएँगे 

फ़ातिहे पढ़ के जहाँ वाले चले जब जाएँगे 

दुनिया पे लहराएँगे दो रूहों के परचम 

आपकी क़सम, आपकी क़सम !

               --- ©शशि कान्त सिंह