Monday 27 October 2014

22 साल पहले साप्‍ताहिक हिन्‍दुस्‍तान में प्रकाशित मेरी 2 बेतुकी कविताएं।


लाख प्रयासों के बावजूद अतुकांत कविता या छंदमुक्‍त कविता का मैं कभी पक्षधर नहीं हो सका। मैं अतुकांत कविता को बेतुकी कविता कहना पसंद करता था। मेरे मित्र जो ऐसी कविताएं लिखते थे, मेरी बात का बुरा मानते थे और एक ने तो यहां तक कह दिया कि आप मात्राएं गिनकर आचार्य बन सकते हैं, लेकिन ऐसी कविता लिख ही नहीं सकते। उस दिन ऑफिस से घर जाते समय चार्टर्ड बस में ही दो कविताएं लिख डाली और अगले दिन उसे प्रकाशन के लिए पोस्‍ट कर दिया। वे दोनों रचनाएं साप्‍ताहिक हिन्‍दुस्‍तान के 1 मार्च, 1992 अंक के पृष्‍ठ 37 में प्रकाशित हुईं। घर की सफाई के दौरान उनकी फोटो कॉपी मेरे हाथ लगी है जिसे अपने मित्रों की सेवा में पुन: प्रस्‍तुत कर रहा हूँ:  

 

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