Tuesday 14 October 2014

लोकतंत्र और हमारी तरक्‍़की/भीकास/परगती/डेभलपमेंट (Development)


वाह रे भीकास!


तरक्‍़क़ी मेरे हिस्‍से में फ़क़त इतनी ही आई है
जहां होती थी इक खटिया, वहां पर अब चटाई है

यहां लोहे के वो खंबे किसी नेहरू ने गड़वाए
मगर बिजली की मत पूछो, न आनी थी न आई है

यहां की सारी इस्‍कीमें रहा करती हैं फाइल में
यहां हर खेत काग़ज के, तो स्‍याही से सिंचाई है

शहर को जाता है पानी में डूबा रास्‍ता है जो
अभी बिरसा की बेटी तैरकर मैके में आई है

मरा करते हैं कितने पीलिया, टीबी व डेंगू से
यहां तुलसी है इंजेक्‍शन तो गंगाजल दवाई है

दुलरिया पेट से है, चौधरी ने फेर ली आंखें
सुना है हरखुआ ने आज पंचायत बुलाई है

नज़र आती नहीं, ढूंढा बहुत घर में भी बाहर भी
डमोक्रेसी है रक्‍कासा, दबंगों की लुगाई है

ये अफसर है बहुत का़बिल, किसी मंत्री का साला है
इसी के दम पे गुड़िया जीतकर संसद में छाई है

मेरे दामाद को नक्‍सल बताकर मार डाला था
तभी मेडल मिला उसको, तरक्‍़की़ तब से पाई है

नहीं जिसका कोई वो नक्‍सलाइट पोस्टिंग काटे
जुगाड़ू हैं जो बस उनके ही हिस्‍से में मलाई है


                                  -- शशिकान्‍त सिंह


1 comment:

  1. Very nice Shashikant Ji.. Apt observation and prolific display of word art!!!

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