Wednesday 15 October 2014

भाई, दोहा दूहिए, बड़ी दुधारू गाय।।


  
बीवी की चखचख कभी, कभी बॉस की डांट
घर बाहर दोनों खड़ी, सुखनवरों की खाट।।

कवि प्रयोगवादी वही, करे जो उल्‍टे काम
प्‍याज चबाए खीर संग, मुर्गे के संग आम।।

छाया में बैठे लिखै, छायावादी सोय
जिमि जनपथ में जीम के, कवि जनवादी होय।।

प्रगतिशील कवि है चतुर, पहचाने बाजार
निष्‍ठा बदले बस तभी, जब बदले सरकार।।

कवि रहस्‍यवादी वही, रखे छुपाके बक्‍स
बीवी तक जाने नहीं, रात कहां था शख्‍स।।

रोवै दुनिया देखकर, तीरथ में बसि जाय
बीवी से भागत फिरै, भगत कवी कहलाय।।

हर वादी से मिल लिया, कहीं चैन ना आय
बलि जाऊं मनुवादियों, निर्गुण दियो सुनाय।।

यूं तो ग़ज़लें कह गए, बड़े-बड़े बलवंत
सिंहासन से उठ गए, जब आए दुष्‍यंत।।

परदु:ख कातर लेखनी, द्रवै देखि संसार
हरसिंगार के फूल ज्‍यों, झरैं किरण के भार।।

प्रेमचंद की लेखनी, गा़लिब के अंदाज
दिनकरजी की जूतियां, मेरे सिर के ताज।।
 
तेरह-ग्‍यारह सीख के, जग को देहु बताय
भाई, दोहा दूहिए, बड़ी दुधारू गाय।।

                               -- शशिकान्‍त सिंह

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