हमारे अंदर इतनी हीनता की भावना/ एहसास-ए-कमतरी /inferiority complex क्यों है? जब किसी विदेशी/अजनबी को कोई बड़ा पुरस्कार मिलता है तो हम खुश होते हैं, तालियां बजाते हैं, उसकी जीवनी पढ़ते हैं, उसके खांसने-छींकने तक की अदा पर रीझते हैं। वो पुरस्कृत व्यक्ति अगर अपनी...पोंछकर ट्वालेट पेपर भी बाहर फेंक दे तो हम, विशेषकर हमारी मीडिया उस कागज पर टूट पड़ती है, उसे उठाकर, उसकी झुर्रियां दूर करके अपने लिए या पूरी दुनिया के लिए भौतिक/रासायनिक/चिकित्सीय/आर्थिक/साहित्यिक संदेश या विश्व शांति का संदेश ढूंढने लगती है। दुर्भाग्यवश, जब वह पुरस्कृत चेहरा हमारा जाना-पहचाना होता है, हमारे बीच का होता है, तो हम ताली तो बजाते हैं मगर ज़रा दूसरे तरीके से। हम अपनी ताली अपने ही गालों पर बजाने लगते हैं। अपने बाल नोचने लगते हैं। ऐसा क्यों होता है? क्या हम सचमुच ऐसी कौ़म या ऐसे जेंडर हैं जिसका काम दूसरों की खुशियों में ही ताली बजाकर कमाना-खाना है? हमारा खुद का कोई पुंषत्व नहीं है? क्या हम सचमुच आर्य (श्रेष्ठ) हैं?
No comments:
Post a Comment