Monday, 25 August 2025

छोटी ना समझो हमको पिया ...

 20 जून, 1980, सरौनी, जौनपुर 

सतसइया के दोहरे, ज्यों नाविक के तीर। 

देखन में छोटे लगे, घाव करें गंभीर।। 

डांग डिंग डांग डिंग डांग, डिंगडां डिंगडां - 4


छोटी ना समझो हमको पिया

डांग डिंग डांग डिंग डांग, डिंगडां डिंगडां 

छोटी ना समझो हमको पिया 

डांग डिंग डांग डिंग डांग, डिंगडां डिंगडां 

मेले में सब जैसे झूले हिंडोला

डांग डिंग डांग डिंग डांग, डिंगडां डिंगडां 

सावन में सब जैसे झूले हैं झूला 

डांग डिंग डांग डिंग डांग, डिंगडां डिंगडां 

मेले में सब जैसे झूले हिंडोला

सावन में सब जैसे झूले हैं झूला 

वैसे झूला दूँगी, ढिनचक, ढिनचक, ढिनचक

वैसे झूला दूँगी तुमको पिया

छोटी ना समझो हमको पिया


पुरवा में लहराए फूलों की क्यारी

आँधी में हिलती है अमवा की डारी

वैसे हिला दूंगी तुमको पिया 

छोटी ना समझो हमको पिया


गोदिया में गोरी जो बच्चा खिलाए

छतिया लगाके जो उसको सुलाए

वैसे सुला दूंगी तुमको पिया

छोटी ना समझो हमको पिया 


गर्मी के छूते घी ज्यों पिघलता

घी जो पिघलकर के थाली में गिरता

 वैसे पिघलता दूंगी तुमको पिया

छोटी ना समझो हमको पिया 


कहने को बाकी है कितनी है बतिया

पर बातों में आज बीते ना रतिया

बुझो तो क्या दूंगी तुमको पिया

छोटी ना समझो हमको पिया 

             --- ©शशि कान्त सिंह

छोड़ी दुनिया की रीत...

छोड़ी दुनिया की रीत, डडम डम डडम डम

मैं ने जोड़ी तुझसे प्रीत, डडम डम डडम डम

छोड़ी दुनिया की रीत, मैं ने जोड़ी तुझसे प्रीत,

तुझे मन का मीत बनाया, कि तू मुझे प्यारा लगे


मीरा बन के जग छोड़ी, अपनों से मुँह मोड़ी

तुझे अपना श्याम बनाया कि तू मुझे प्यारा लगे ।।


मैं हूँ प्रेम दीवानी, ऊपर से ये रुत मस्तानी

तू मुझको समझ ना पराया कि तू मुझे प्यारा लगे ।।


मैं हूँ जोगन तू है जोगी, तू है वैद्य मैं हूँ रोगी

तूने रोग ना मेरा बताया कि तू मुझे प्यारा लगे ।।


तेरी राहों में खड़ी हूँ तेरे दर पे पड़ी हूँ

तूने फिर भी गले ना लगाया, कि तू मुझे प्यारा लगे ।।

 

अपनी जान भी दे दूँगी, जाके काशी करवट लूँगी

गर तूने ना अपना बनाया कि तू मुझे प्यारा लगे।।

                               --- ©शशि कान्त सिंह

पुरवइया ने पनघट पे ...

 23 मार्च, 1978, वटवृक्ष, सरौनी 

पुरवइया ने, डडम डम डडम डम - 2 

पुरवइया ने पनघट पे छेड़ी सरगम 

बजी तेरी पायलिया छम-छम-छम - 2

छम-छम-छम, छम-छम-छम, 

छम-छम-छम, छम-छम-छम,

छम-छम-छम, छम-छम-छम, 

छम-छम-छम, छम- छम-छम,

तेरी जुल्मी अदाओं ने ढाया सितम

मुफ़्त में जाँ गंवायी रे लुट गए हम

पुरवइया ने पनघट पे छेड़ी सरगम 

बजी तेरी पायलिया छम-छम-छम - 2


तेरी अलकों से मौसम ने अँगड़ाई ली- 2 

तेरी पलकों ने रूत में शरारत भरी 

तेरी बिंदिया ने, डडम डम डडम डम

तेरी बिंदिया ने नींदिया उड़ाई सनम 

 बजी तेरी पायलिया छम-छम-छम

पुरवइया ने पनघट पे छेड़ी सरगम 

बजी तेरी पायलिया छम-छम-छम।।


तेरे ख़्वाबों में डूबा हुआ हूँ दिन-रैन

तेरे कजरारे नैनों ने छीना है चैन

तेरे होंठ हैं गुलाब, हुआ भौंरे को भरम

बजी तेरी पायलिया छम-छम-छम।।


तुम्हें इतना बताना तो ज़रूरी है

तेरे बिना मेरी ज़िंदगी अधूरी है

मैं हूँ रात का मुसाफिर तू है चाँद पूनम

बजी तेरी पायलिया छम-छम-छम।।

                --- ©शशि कान्त सिंह

बचपन की कुछ अदाएँ...

21 मार्च, 1978, वट वृक्ष, गोमती, सरौनी 

बचपन की कुछ अदाएँ, यौवन का कुछ निखार

डम डमडम डमडमडम, डम डमडम डमडमडम - 4 

डमक डमक डम 

बचपन की कुछ अदाएँ, यौवन का कुछ निखार 

बोलो करूँ तुम्हारे, किस रूप को मैं प्यार।।


चँदा सा प्यारा बचपन, बचपन, 

चँदा सा प्यारा बचपन-2

चँदा सा प्यारा बचपन, रुख़्सत सा हो रहा 

सूरज सा तेज यौवन, यौवन, 

सूरज सा तेज यौवन - 2

सूरज सा तेज यौवन, दस्तक सा दे रहा

दो नूर के मिलन से, दमके तेरे रुख़सार 

बोलो करूँ तुम्हारे किस रूप को मैं प्यार।।


महताब-ओ-आफ़ताब का सँगम है तेरा रूप

चाँदी सी थोड़ी चाँदनी, सोने सी थोड़ी धूप

आते जो देखा तुमको, शरमा गयी बहार

बोलो करूँ तुम्हारे किस रूप को मैं प्यार।।


बिजली सी चमके बिंदिया तेरी 

बिजली सी चमके डमक ढिन - 2

बिजली सी चमके बिंदिया तेरी, बादल से काले बाल

मन मोर सा मचल उठा, पूछो ना दिल का हाल

उम्मीद में हूँ कब गिरे, रस की मधुर फुहार

बोलो करूँ तुम्हारे किस रूप को मैं प्यार।।


तेरि हंसिनी सी चाल है, हिरनी सी तेरी आँखें

रसवंती तेरे होंठ हैं, नारंगी की दों फाँकें

इक रूप का शिकारी, ख़ुद हो गया शिकार

बोलो करूँ तुम्हारे किस रूप को मैं प्यार।।

                      --- ©शशि कान्त सिंह

आपकी क़सम...

 13 दिसम्बर, 2015, नैनीताल

रौंद के आएँ है कितनी मुश्किलें और अड़चनें 

घोल दें अब भी फ़ज़ाओं में दिलों की धड़कनें

छू दें सूखी शाख़ को तो गुल लगेंगे महकनें 

आहनी ज़ंजीर भी चटका दें ये क़दम

आपकी क़सम, आपकी क़सम ! 


उम्र के पलड़ों में ना तौलो दिली जज्ब़ात को 

अब भी लिख देंगे लहू से अपने दिल की बात को 

बर्फ़ में भर दें हरारत, लू से भर दें रात को 

आशियाँ फिर से बना डालें, है वो दमख़म 

आपकी क़सम, आपकी क़सम !


दे दो तुम आँचल से अपने, चाँद को कुछ चाँदनी 

जुगनुओं को अपनी पेशानी से थोड़ी रोशनी 

रात को गुलज़ार कर दो, दिन को कर दो शबनमी 

ये ज़माले-हुस्न हो सकता ज़रा ना कम

आपकी क़सम, आपकी क़सम !


फूलों के होंठों पर लिख दूँ वो इनायत आपकी 

गीता के कुछ बोल, कुछ आयत क़लामे-पाक़ की

कुछ मेरी नादानियाँ औ कुछ शरारत आपकी

आने वाली नस्लों पे भी कर दें कुछ करम 

आपकी क़सम, आपकी क़सम ! 


वक्त की इन वादियों में जब फ़ना हो जाएँगे

रेत के ज़र्रों की माफिक ख़ाक में मिल जाएँगे 

फ़ातिहे पढ़ के जहाँ वाले चले जब जाएँगे 

दुनिया पे लहराएँगे दो रूहों के परचम 

आपकी क़सम, आपकी क़सम !

               --- ©शशि कान्त सिंह

ओ मेरे माँझी आ जा ...

 ओ माँझी रे, ओ माँझी रे,

 ओ माँझी रे, ओ माँझी ...

ओ मेरे माँझी आ जा, 

ओ मेरे माँझी आ जा -2

सूनी मेरी मड़इया ऽऽऽ - 2, 

इक दीप तो जला जा, 

ओ मेरे माँझी आ जा, 

ओ मेरे माँझी आ जा -2


दिन तो मेरा बीता, 

तेरी बाँसुरी की धुन सुनते

इस आशियाने को, 

चुनती रही मैं तिनके

अब शाम ढल रही है ऽऽऽ -2, 

मुँह मोड़ के तू ना जा

ओ मेरे माँझी आ जा, 

ओ मेरे माँझी आ जा -2


तू दीप है मेरा, 

और मैं हूँ तेरी बाती

तेरे बिना कहीं, 

मैं चैन ही न पाती

मझधार में है नइया ऽऽऽ -2, 

पतवारे लेके आ जा

ओ मेरे माँझी आ जा, 

ओ मेरे माँझी आ जा -2


आँसू हैं साथ मेरे, 

कांटों भरे सफर में

तेरे नाम की मैं जोगन, 

बाली सी इस उमर में -2

मेरे दिल के आइने में ऽऽऽ -2, 

इक बार तो समा जा

ओ मेरे माँझी आ जा, 

ओ मेरे माँझी आ जा -2


दिल में छुपा के तुझको, 

करती रही मैं पूजा

तू मेरा देवता, 

कोई नहीं है दूजा 

आख़िर कहाँ हुई है ऽऽऽ -2, 

मुझसे ख़ता बता जा 

ओ मेरे माँझी आ जा, 

ओ मेरे माँझी आ जा -2 

               ©शशि कान्त सिंह

नाचे मेरे मन का मोर ...

7 अप्रैल, 1999, श्याम विहार

तकधिन तकधिन तकधिन तक, 

तकधिन तकधिन तकधिन तक

तकधिन तकधिन तकधिन तक, 

तकधिन तकधिन तकधिन तक

कितना मैं ने समझाया, 

पर चला ना कोई ज़ोर

तेरि ज़ुल्फ़ों की काली घटा पर, 

नाचे मेरे मन का मोर

तकधिन तकधिन तकधिन तक, 

तकधिन तकधिन तकधिन तक

चाहे मुझको शायर समझो, 

चाहे समझो हुस्न का चोर

तेरी ज़ुल्फ़ों की काली घटा पर, 

नाचे मेरे मन का मोर


तेरा चांद सा मुखड़ा देखा, 

तो मैं ने ईद मनाली

दीपक जैसे तेरे नैना, 

देखा तो हुई दीवाली

मेरे दिल तो एक पतंग है 

और तुम हो इसकी डोर 

तेरी ज़ुल्फ़ों की काली घटा पर, 

नाचे मेरे मन का मोर 

         ©शशि कान्त सिंह 

प्यार में इतने धक्के खाए, फटा पजामा-कुर्ता...

 18 जून, 1997, श्याम विहार

प्यार में इतने धक्के खाए, फटा पजामा-कुर्ता

अरे इतनी चोट मुहब्बत ने दीऽऽऽ, दिल का बन गया भुर्ता

तो, अब जीकर क्या करना यार, अब जीकर क्या करना - 2

प्यार में जीना है दुश्वार, अब जीकर क्या करना

                           ©शशि कान्त सिंह 

किसको-किसको प्यार करूँ मैं ...

 9 अप्रैल, 1997, नयी दिल्ली

किसको-किसको प्यार करूँ मैं, 

किससे-किससे नैना चार

किसको-किसको दिल दूँ अपना, 

मैं तन्हा आशिक़ हैं हज़ार

किसको-किसको प्यार करूँ मैं, 

किससे-किससे नैना चार

किसको-किसको दिल दूँ अपना, 

मैं तन्हा आशिक़ हैं हज़ार


हिरनी एक, हज़ार शिकारी, 

ऐसा तो देखा ही नहीं

एक शमा, इतने परवाने, 

बुझ ना जाए शमा कहीं

कोई तीरे-नज़र चलाए, 

कोई मारे नैन-कटार

किसको-किसको दिल दूँ अपना, 

मैं तन्हा आशिक़ हैं हज़ार


खिलने से पहले ही क्यूँ कर 

कली मसल दी जाती है

रात सेज पर बिछती है, 

पर सुबह बदल दी जाती है

लाखों बीमारों के दरम्यां 

मैं बेचारी एक अनार

किसको-किसको दिल दूँ अपना, 

मैं तन्हा आशिक़ हैं हज़ार

                 ©शशि कान्त सिंह

मेरे प्यार को तूने क्यों क्यों छोड़ा..

 8 अप्रैल, 1997, नयी दिल्ली

मेरे प्यार को तूने क्यों क्यों छोड़ा - 2

मेरा प्यार भरा दिल क्यों तोड़ा

मेरे प्यार को तूने क्यों क्यों छोड़ा 

मेरा प्यार भरा दिल क्यों तोड़ा


प्यार हमारा तेरी नज़र में सच्चा प्यार नहीं था ?

या तुमको उन क़समों-वादों पर एतबार नहीं था?

मेरे प्यार को तूने क्यों क्यों छोड़ा 

मेरा प्यार भरा दिल क्यों तोड़ा


बैरी तूने प्यार-वफ़ा की अच्छी रस्म निभायी

चुटकी भर सिंदूर लगाकर हो गयी आज परायी

मेरे प्यार को तूने क्यों क्यों छोड़ा 

मेरा प्यार भरा दिल क्यों तोड़ा


अपना नशेमन छोटा था उस सोने के पिंजरे से?

या मेरा दिल हल्का पड़ गया दौलत के पलड़े पे?

मेरे प्यार को तूने क्यों क्यों छोड़ा 

मेरा प्यार भरा दिल क्यों तोड़ा 


तोहफ़े सारे लाए हैं पर तोहफ़ा मेरा निराला 

दिल को पिरो कर लाया हूँ अपने अश्कों की माला 

मेरे प्यार को तूने क्यों क्यों छोड़ा 

मेरा प्यार भरा दिल क्यों तोड़ा 

                 ©शशि कान्त सिंह

मेरा दिल दुखाने की बात ना करो..

पालम, नई दिल्ली, 16 जुलाई, 1996

मेरा दिल दुखाने की बात ना करो

आते ही जाने की बात ना करो।। - 2


मेरी मज़बूरी है, जाना ज़रूरी है

कल फिर मिलूंगी, इक रात की तो दूरी है - 2

कल तो एक धोखा है, कल किसने देखा है

इक रात में लाखों साँसों की दूरी है - 2

मुझको बहलाने की बात ना करो

आते ही जाने की बात ना करो।।

 

ऐसी जवां रातों में, प्यारी मुलाक़ातों में

ज़िंदगी गुज़रने दो प्यार भरी बातों में - 2

ऐसी मुलाक़ातों में, बातों ही बातों में 

आँचल में लग जाते दाग़ ऐसी रातों में -2 

पहले शह देकर, फिर मात ना करो

आते ही जाने की बात ना करो।। - 2


क्या हसीं नज़ारा है, मौसम भी प्यारा है

चाँद मेरी बाहों में, माथे पे सितारा है - 2

कल भी प्यारा होगा समाँ, धड़कने फिर होंगी जवां

डोली पहले ले आओ, चाँद फिर तुम्हारा है - 2

पिछड़े ज़माने की बात ना करो

आते ही जाने की बात ना करो।।

                 ©शशि कान्त सिंह 

तुम्हारे बिना ज़िंदगी इक सज़ा है...

30 जुलाई, 1996, पालम, नई दिल्ली

बहारों का मौसम भी लगता ख़िज़ाँ है

तुम्हारे बिना ज़िंदगी इक सज़ा है


सदा याद आतीं तुम्हारी ही बातें

ना कटते हैं दिन ना गुज़रती हैं रातें

जाऊँ कहाँ मैं जहाँ चैन आए

चारों तरफ हैं तुम्हारे ही साए

मुहब्बत में मिलता ये कैसा सिला है

तुम्हारे बिना ज़िंदगी इक सज़ा है


ये रस्में मुहब्बत की राहें कठिन हैं

सितमगर ये रातें, पहाड़ों से दिन हैं

या रब है ये कैसी, ये तेरी ख़ुदायी

ये पल भर का मिलना, ये लंबी जुदाई

कि तन्हाइयों का अजब सिलसिला है

तुम्हारे बिना ज़िंदगी इक सज़ा है


तेरे बिन हैं सूनी, ये जीवन की राहें

हैं पुरनम ये आँखें, लबों पर हैं आहें

उदासी की बदली, ये सुनसान राहें

किसी के दरस को तरसती निगाहें

बड़े कश्मकश में दिले-नातवां हैं

तुम्हारे बिना ज़िंदगी इक सज़ा है 

                     ©शशि कान्त सिंह

समय की धार में उम्र की मिश्री ...

समय की धार में उम्र की मिश्री, घुलती जाए घुलती जाए

सबको ही घुलना है इसमें, आज घुले या कल घुल जाए


कल तक तू था गोद किसी के, आज है तेरी गोद में कोई

पर तू इतना जान ले पगले, तू ना किसी का, तेरा ना कोई

सारे रिश्ते-नाते झूठे, वक़्त पड़े कोई काम ना आए

समय की धार में उम्र की मिश्री, घुलती जाए घुलती जाए


ख़्वाब सुनहरे, स्वप्न रुपहले, महल-दो महले सब हैं माया

ख़ाली हाथ चले जाना है, साथ ना कुछ कोई ले जा पाया

बस वो जीना ही जीना है, जो औरों के काम भी आए

समय की धार में उम्र की मिश्री, घुलती जाए घुलती जाए


छाप-तिलक ये कंठी माला, इससे ना कुछ होने वाला

सिज़्दे-नमाज़, भजन, जप-तप से ईश्वर ख़ुश ना होने वाला

पोंछता जा दुखियों के आँसू, तेरा जन्म सफल हो जाए

समय की धार में उम्र की मिश्री, घुलती जाए घुलती जाए


बचपन तूने खेल में खोया, और जवानी रंगरेलियों में

आज बुढ़ापे में भी क्यों तू, भटके माया की गलियों में

अब से भी तू राह पे आ जा, तो शायद मंज़िल मिल जाए

समय की धार में उम्र की मिश्री, घुलती जाए घुलती जाए

                                             ©शशि कान्त सिंह

जनम-जनम की आस...

 27 नवंबर, 1995, Palam, New Delhi 

जनम-जनम की आस यही है, युग-युग की अभिलाषा है

प्रेम की बस दों घूँट पिला दो प्यार का पँछी प्यासा है 

अरे प्यार का पँछी प्यासा है, अरे प्यार का पँछी प्यासा है


बिना प्रेम के गॉड, गुरू, अल्ला या राम नहीं मिलते

जब तक सच्‍चा प्रेम ना मिलता दिल के फूल नहीं खिलते

बिना प्रेम के जग सूना है, चारों ओर निराशा है

प्रेम की बस दों घूँट पिला दो प्यार का पँछी प्यासा है

 

मंदिर-मस्जि़द में जाने की मुझको कहाँ जरूरत है

मेरा दिल ही इक मंदिर है उसमें तेरी मूरत है

बंद आँख से देखूँ तुमको यही एक अभिलाषा है

प्रेम की बस दों घूँट पिला दो प्यार का पँक्षी प्यासा है 


प्रेम ही जप है, प्रेम ही तप है, प्रेम ही सच्ची पूजा है

प्रेम की जग का परम तत्त्व है, और न कोई दूजा है

होंठ ना हिलें बात हो जाए-2, यही प्रेम की भाषा है

प्रेम की बस दों घूँट पिला दो प्यार का पँछी प्यासा है 

                                   ©शशि कान्त सिंह

तिरंगा फहराओ ...

 10 अगस्त, 1986, सहसो, प्रयागराज

आज तो है आज़ादी का दिन, 

झूमो, नाचो, गाओ

तिरंगा फहराओ

आज है पंद्रह अगस्त, 

तिरंगा फहराओ 

 

कैसे सुनाऊँ इसकी कहानी, 

भर आता है आँख में पानी

हमने खेली ख़ून की होली, 

सीने पर खायी थी गोली

देश के लिए बने सन्यासी, 

हँसते-हँसते चढ़ गए फाँसी

लाखों का सिंदूर मिटा था, 

लाखों का घर-बार लुटा था

माँ ने लाखों लाल गँवाए, 

लौट के जो फिर घर नहीं आए

हमने अपना ख़ून बहायाऽऽऽऽऽऽऽऽ  

हमने अपना ख़ून बहाया

पर तुम ईद मनाओ

तिरंगा फहराओ

आज है पंद्रह अगस्त, 

तिरंगा फहराओ 


मिट गए वो लाखों दिल वाले, 

कर के तिरंगा तेरे हवाले

तीन रंग का फूल ये प्यारा, 

ज्यों नभ में रंगीन सितारा

देखो ये झुकने ना पाए, 

चाहे अपना सर कट जाए

आन-बान ये शान हमारा, 

इसके साए में सुख सारा

इसकी छवि को रखना निर्मल, 

ये है भारत माँ का आँचल

आओ इसको शीश झुकाकरऽऽऽऽऽऽऽऽ

आओ इसको शीश झुकाकर, 

वंदे मातरम गाओ 

तिरंगा फहराओ

आज है पंद्रह अगस्त, 

तिरंगा फहराओ

 --- ©शशि कान्त सिंह

क्या भूलूँ क्या याद करूँ...

जीवन के बीते लम्हों का, कैसे करूं मैं लेखा-जोखा

कुछ कड़वे हैं, कुछ तीखे हैं, कुछ खट्टे हैं कुछ मीठे हैं

किसको भूला दूँ किसको मिटा दूँ, 

किससे दिल को शाद करूँ

क्या भूलूँ क्या याद करूँ... 


चुनता रहा तिनके जीवन भर, जीता रहा बस उम्मीदों पर

बुन ना पाया नीड़ सुनहरा, हर डाली पर बर्क़ का पहरा

आहें भरूँ या लब सी लूँ मैं, या आँसू बर्बाद करूँ

क्या भूलूँ क्या याद करूँ... 


साथ हैं सिर्फ़ ग़मों के साए, फिरता वफ़ा की लाश उठाए

तोड़ दूँ कसमें वो मैं नहीं हूँ, कल तक जो था आज वहीं हूँ

मैं वो नहीं कि भूल के तुमको, दूजा जहाँ आबाद करूँ

क्या भूलूँ क्या याद करूँ... 


हमनें निभाई रस्में वफा़ की, तुमको जूनुँ था सिर्फ़ जफ़ा की

मैं था मेरा प्रेम-पुजारी, तुमको थी शक की बीमारी

मैं तो कोई हकीम नहीं जो, शक की दवा ईज़ाद करूँ

क्या भूलूँ क्या याद करूँ... 

                   --- ©शशि कान्त सिंह

नैना तरस गए पर तुम ना आए ..

 27 दिसंबर, 1988, इलाहाबाद

कितने युगों तक दिल ने तुझको पुकारा

यादों की शम्मा लेकर, बाट निहारा

कितनी दुआएँ माँगी हाथ उठाए

नैना तरस गए पर तुम ना आए।।


जाड़ों में क़िस्मत में पड़ते हैं पाले

फागुन में जी जलता है पड़ते हैं छाले

सावन भी आए तो बस नैन भिगाए

नैना तरस गए पर तुम ना आए।।


पतझड़ तो आते पर ना आती बहारें

सपनों में भी ना मिलते दरस तुम्हारे

कितने जनम से हम हैं आस लगाए

नैना तरस गए पर तुम ना आए।।


साथी रे पँछी बनके अब तो तू आ जा

आख़िरी पल है अब तो दरस दिखा जा

साँसों के धागे कभी टूट ना जाए

नैना तरस गए पर तुम ना आए।।

             --- ©शशि कान्त सिंह

जो खिल ना सका वो फूल हूँ मैं ..

9 अक्तूबर, 1986, प्रयागराज

जो खिल ना सका वो फूल हूँ मैं, 

जो सज ना सका वो साज़ हूँ मैं 

जो जल ना सका वो दीप हूँ मैं, 

वीराने की आवाज़ हूँ मैं।।

जो खिल ना सका वो फूल हूँ मैं ....


दुनिया से शिकायत क्या करना, 

जब टूट गया मेरा सपना

मुझे मौत ने भी ठुकराया है, 

जीवन भी हो न सका अपना

इक दर्द हूँ, इक ख़ामोशी हूँ, 

इक टूटी हुई परवाज़ हूँ मैं

जो जल ना सका वो दीप हूँ मैं, 

वीराने की आवाज़ हूँ मैं।।


मालूम नहीं था दौलत पे, 

दिल की दुनिया बिक जाती है

मालूम नहीं था ताज बिना, 

मुमताज़ नहीं मिल पाती है 

मुमताज़ की याद दफ़न जिसमें, 

वो टूटा हुआ इक ताज हूँ मैं

जो जल ना सका वो दीप हूँ मैं, 

वीराने की आवाज़ हूँ मैं।।


महफ़िल हो मुबारक तुमको सनम, 

तन्हाईयाँ मेरे साथ र‍हें 

दुनिया में नाम मिले तुझको, 

रूसवाइयाँ मेरे साथ र‍हें 

जो गीत कभी ना बन पाए, 

वो बिखरे हुए अल्फ़ाज़ हूँ मैं 

जो जल ना सका वो दीप हूँ मैं, 

वीराने की आवाज़ हूँ मैं।।


ख़्वाबों का महल था टूट गया, 

जन्मों का साथी रूठ गया

सोने-चाँदी से टकरा के, 

इक दिल का खिलौना टूट गया

इक भूला-बिसरा कल हूँ मैं, 

इक बीतने वाला आज हूँ मैं 

जो जल ना सका वो दीप हूँ मैं, 

वीराने की आवाज़ हूँ मैं।।

            --- ©शशि कान्त सिंह

मैं रहूँ ना रहूँ ...

 11 जुलाई, 1996, पालम, नयी दिल्ली

मैं रहूँ ना रहूँ, मैं रहूँ ना रहूँ - 4 

तेरे ख़्वाबों ख़यालों में आऊँगा मैं,

तेरी नींदों में सपने सजाऊँगा मैं

घोलकर चाँदनी में बहारों का रंग

तेरे माथे पे बिन्दिया सजाऊँगा मैं

मैं रहूँ ना रहूँ, मैं रहूँ ना रहूँ - 2 


मेरी जान-ए-वफ़ा, बनके चँचल हवा

तेरी अलकों को यूँ छेड़ जाऊँगा मैं

बनके चँदन हवाओं में घुलता हुआ

तेरी साँसों में ख़ुशबू जगाऊँगा मैं

मैं रहूँ ना रहूँ, मैं रहूँ ना रहूँ - 2 


याद मुझको कभी तू करे ना करे

प्यार में ठंडी आहें भरे ना भरे

तेरी गलियों में आवारा फिरता हुआ

इक नज़र बस तुम्हें देख जाऊँगा मैं

मैं रहूँ ना रहूँ, मैं रहूँ ना रहूँ - 2 


प्यार चट्टान है, कोई तिनका नहीं

रिश्ता जन्मों का ये, एक दिन का नहीं

मेरे गीतों को जब भी सुनोगी प्रिये,

तब क़सम से बहुत याद आऊँगा मैं 

मैं रहूँ ना रहूँ, मैं रहूँ ना रहूँ - 2 

           ©शशि कान्त सिंह

मेरे गाँव की मिट्टी ..

 9 जुलाई, 2025, कसलखंड, पनवेल

मेरे गाँव की मिट्टी ये तो बता -

तुझसे कैसे तोड़ूँ नाता?

जो रूखी-सूखी भी मिलती,

तो गाँव छोड़ के क्यों जाता?

मेरे गाँव की मिट्टी ये तो बता,

तुझसे कैसे तोड़ूँ नाता...


पीपल की छैयाँ रूठ गई

तो पनघट ने भी दम तोड़ा,

पायल की रुनझुन सिसक रही

जाने किसने घुँघरू तोड़ा 

पनघट पर जमघट का मंज़र 

खोजे भी नज़र नहीं आता 

जो रूखी-सूखी भी मिलती 

तो गाँव छोड़कर क्यों जाता।


दांतों को नसीब नहीं रोटी

हाथों को कोई काम नहीं

पैरों की नहीं मंज़िंल कोई

मेहनत का कोई ईनाम नहीं

प्यासे इस दश्त की सुधि लेने

कोई भी अब्र नहीं आता

जो रूखी-सूखी भी मिलती 

तो गाँव छोड़कर क्यों जाता।


देते थे जो खेत कभी रोटी 

अब उनमें भूख ही उगती है

खलिहानों की वो वो गौरैया 

शमशान पे दाना चुगती है 

कोयल की मीठी तानों पर 

पपिहा मल्हार नहीं गाता 

जो रूखी-सूखी भी मिलती 

तो गाँव छोड़कर क्यों जाता। 

बागों की हरियाली खोई 

मातम पसरा चौपालों पर 

बगिया के जो माली थे, उनकी 

तस्वीर टंगी दीवारों पर

रोता है सुदामा सिसकी ले 

पर कोई कृष्ण नहीं आता 

जो रूखी-सूखी भी मिलती 

तो गाँव छोड़कर क्यों जाता।

               ©शशि कान्त सिंह

 7 अप्रैल, 1999, श्याम विहार

इक गल पूछूँ मेरे यारा, 

तू क्यों लगे इतना प्यारा - 2

तू है तो ये दुनिया है, 

तुम बिन सूना जग सारा - 2


तेरी आँखों में कैसा जादू,  

तेरे जादू में कैसा नशा है

सच-सच मुझको बतला दे, 

तेरी आँखों में कौन बसा है

तुम्हें जीतने आया था मैं, 

तुम्हें देखते ही दिल हारा

तू है तो ये दुनिया है, 

तुम बिन सूना जग सारा 

क़ुदरत ने तुम्हें युँ तराशा, 

खजुराहो याद आता है

तेरी चाल में ऐसी मस्ती, 

कोर्णाक भी शरमाता है

अप्सरा अजन्ता की हो, 

या जन्नत का हो नज़ारा

तू है तो ये दुनिया है, 

तुम बिन सूना जग सारा 


किसि कवि की हो तुम कविता, 

या दिलकश कोई ग़ज़ल हो

फूलों पे पड़ी शबनम हो, 

या खिलता हुआ कमल हो

कैसे भर दिया ख़ुदा ने 

इक फूल में चमन ही सारा

तू है तो ये दुनिया है, 

तुम बिन सूना जग सारा 


इक गल पूछूँ मेरे यारा, 

तू क्यों लगे इतना प्यारा 

तू है तो ये दुनिया है, 

तुम बिन सूना जग सारा  

    ©शशि कान्त सिंह 

तारों भरी राऽऽऽऽत, पहली मुलाक़ा ऽऽऽऽत ..

 29 मई, 1999, नयी दिल्ली

तारों भरी राऽऽऽऽत, 

पहली मुलाक़ाऽऽऽऽत

कहाँ से शुरूऽऽऽऽ, 

करूँ कोई बाऽऽऽऽत

रात है जवां, प्यारा है समाँ

कैसे मैं बयाँ करूँ जज़्बात

तारों भरी राऽऽऽऽत


गोरा सा मुखड़ा, मुखड़े पे तिल है

मेरे सनम का, फूलों सा दिल है

उसको भला मैं, तोहफ़े में क्या दूँ

सामने मेरे, ये मुश्किल है

फूल को दूँ मैं फूलों की सौगात 

तारों भरी राऽऽऽऽत


साँसों में मेरे वो दिल-नशीं है

पर मेरे दिल की ये बेबसी है

पहली मुहब्बत, पहला मिलन है

देने को फिर भी, कुछ भी नहीं है

कैसे घिरे, प्यार की घटा

कैसे भला, होगी बरसात

तारों भरी राऽऽऽऽत


बरसों सँभाला, जिस दिल को मैं ने

पहले ही उसको, तुम ले चुके हो

नग़्मा भी कोई कैसे सुनाऊँ

होंठों पे मेरे तुम जो बसे हो

सोचा ही नहीं, आएँगे कभी

मेरे सामने, ऐसे हालात

तारों भरी राऽऽऽऽत

             ©शशि कान्त सिंह 

कर ले, कर ले ...

 24 मई, 1999, नयी दिल्ली

कर ले, कर ले, अरे प्यार कर ले ज़रा - 4

फिर ये मौसम हसीं कल रहे ना नहीं

मद भरा ये समाँ खो न जाए कहीं

इसलिए नाच तू गुनगुना मुस्कुरा

कर ले, कर ले, अरे प्यार कर ले ज़रा 


दिल बदल के किसी से तो देखो कभी

दिल के बदले में दिल दे के देखो कभी

तेरा मुर्झाया दिल हो उठेगा हरा

कर ले, कर ले, अरे प्यार कर ले ज़रा 


प्यार की राह में गर बढ़ा तू क़दम

तो ख़ुदा भी मिले औ विसाले-सनम

दिल के बदले में दिल का ये सौदा खरा

कर ले, कर ले, अरे प्यार कर ले ज़रा 


खिलती कलियों को तू 

खिलखिलाना सिखा

इन तितलियों को तू 

गुनगुनाना सिखा

ग़ौर मुखड़े पे कर, 

रहने दे अन्तरा

कर ले, कर ले, अरे प्यार कर ले ज़रा 

   ©शशि कान्त सिंह 

उंगली घिस गयी दिन गिन-गिन ..

 13 जून, 1997, श्याम विहार

उंगली घिस गयी दिन गिन-गिन, 

पर आयी ना मिलन की रात

तक धिनधिनधिनधिन धिनतक धिन, 

तक धिनधिनधिनधिन धिनतक धिन

उंगली घिस गयी दिन गिन-गिन, 

पर आयी ना मिलन की रात

कब उठ्ठेगी डोली मेरी, 

कब आएगी बारात 

सजन ज़रा जल्दी करना


उंगली घिस गयी दिन गिन-गिन, 

पर आयी ना मिलन की रात

तक धिनधिनधिनधिन धिनतक धिन, 

तक धिनधिनधिनधिन धिनतक धिन

उंगली घिस गयी दिन गिन-गिन, 

पर आयी ना मिलन की रात

कब बाँधूँगा सेहरा मैं, 

कब लाऊँगा बारात 

गोरी ज़रा जल्दी करना


मेरी सब सखियों के अब तक 

पाँव हो चुके भारी

मैं ही बच गयी एक अभागन, 

अब तक रही कुँवारी

मेरी सब सखियों के अब तक 

पाँव हो चुके भारी

मैं ही बच गयी एक अभागन, 

अब तक रही कुँवारी

कितनी बार घिरे बादल 

पर हो ना सकी बरसात

तक धिनधिनधिनधिन धिनतक धिन

तक धिनधिनधिनधिन धिनतक धिन

कितनी बार घिरे बादल 

पर हो ना सकी बरसात

कब उठ्ठेगी डोली मेरी, 

कब आएगी बारात 

सजन ज़रा जल्दी करना


मेरे यारों के हैं कितने 

बच्चे प्यारे-प्यारे

अपने राम की क़िस्मत खोटी, 

अब तक रहे कुँवारे

हाथ उठाए दुआ माँगता ऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ 

अरे हाथ उठाए दुआ माँगता, 

ख़ुदा से मैं दिन-रात 

कब खोलूँगा मैं घूँघट-पट, 

कब आएगी वो रात

गोरी ज़रा जल्दी करना

सजन ज़रा जल्दी करना

गोरी ज़रा जल्दी करना

सजन ज़रा जल्दी करना


अपनी शादी में ये पंडित 

ही रोड़े अटकाए 

कभी तो कहता लगन नहीं है, 

पंचक कभी बताए 

अपनी शादी में ये पंडित 

ही रोड़े अटकाए 

कभी तो कहता लगन नहीं है, 

पंचक कभी बताए 

पीटो इस बूढ़े खूसट को 

तभी बनेगी बात

तभी बजेगी शहनाई 

और आएगी वो रात

गोरी ज़रा जल्दी करना

सजन ज़रा जल्दी करना

गोरी ज़रा जल्दी करना

सजन ज़रा जल्दी करना

        © शशि कान्त सिंह 

            

 10 जून, 1997, श्याम विहार

तुम बिन चैन कहाँ रे ऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ 

तुम बिन चैन कहाँ ऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ

जिस दिन से मुँह मोड़ गया तू

मुझको अकेला छोड़ गया तू

जिस दिन से मुँह मोड़ गया तू

मुझको अकेला छोड़ गया तू

उस दिन से मैं तेरी क़सम हूँ ज़िंदा

लाश समाँ ऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ

तुम बिन चैन कहाँ रे ऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ

तुम बिन चैन कहाँ ऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ


जी करता पँछी बन जाऊँ

उड़कर तेरे पास मैं जाऊँ

जी करता पँछी बन जाऊँ

उड़कर तेरे पास मैं जाऊँ ऽऽऽ

पर मेरे पर काट गया तू

दम तोड़ें अरमाँ ऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ

तुम बिन चैन कहाँ ऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ

जिन राहों से तू गुजरा था

जिन राहो पर सँग चला था

ढूँढ रहे मेरे बावरे नैना -2

उन कदमों के निशाँ ऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ 

तुम बिन चैन कहाँ ऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ

तुम बिन चैन कहाँ रे ऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ

तुम बिन चैन कहाँ ऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ


ओ निर्मोही, वापस आ जा 

आके मेरे दिल में समा जा

सुन सकते हो, तो सुन लो तुम

मेरे दिल की अज़ां ऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ

तुम बिन चैन कहाँ ऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ

तुम बिन चैन कहाँ रे ऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ

तुम बिन चैन कहाँ ऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ

                  ©शशि कान्त सिंह 

मेरे जीवन पर यारा, तेरा कितना है उपकार ...

4 अप्रैल, 1997, नयी दिल्ली

मेरे जीवन पर यारा, 

तेरा कितना है उपकार

मेरा दिल नन्हां सा पँछी, 

तेरा नील-गगन सा प्यार


तेरी मीठी-मीठी, डिंगडांगडिंगडांग, 

रे तेरी मीठी-मीठी, डिंगडांगडिंगडांग

तेरी मीठी-मीठी बातें याद आए, 

मोहें सारी रतिया

मोहें सारी-सारी रात याद आए, 

तेरी मीठी बतियां 

इस रतिया-बतिया में यारा 

हो जाता है भिनसार

मेरा दिल नन्हां सा पँछी, 

तेरा नील-गगन सा प्यार


मेरा जीवन था इक पत्थर, 

इसे तूने तराशा

तू इक बहती नदिया है, 

मैं राही प्यासा

मेरा जीवन था इक पत्थर, 

इसे तूने तराशा

तू इक बहती नदिया है, 

मैं राही प्यासा

मेरे जीवन की बगिया को 

तुमने ही किया गुलज़ार

मेरा दिल नन्हां सा पँछी, 

तेरा नील-गगन सा प्यार


गर तुम ना मिलते तो हम, 

मर जाते क़सम से

हम इक-दूजे के प्यासे, 

थे कितने जनम से

गर तुम ना मिलते तो हम, 

मर जाते क़सम से

हम इक-दूजे के प्यासे, 

थे कितने जनम से

तेरा प्यार है ऐसा सागर, 

जिसका कोई आर ना पार

मेरा दिल नन्हां सा पँछी, 

तेरा नील-गगन सा प्यार

                  © शशिकान्त सिंह  

सो जा, सो जा, सो जा, ऐ मेरे दिल सो जा..

 12 मई, 1999, नयी दिल्ली

सो जा, सो जा, सो जा, 

ऐ मेरे दिल सो जा

सो जा, सो जा, सो जा, 

तू सपनों में खो जा


प्यार-वफ़ा बकवास यहाँ, 

ईमान तो चांदी-सोना है

दौलत की मायानगरी में 

तू तो एक खिलौना है

जब जी चाहा गले लगाया, 

मन भरते ही छोड़ दिया

जब जी में आया तब खेला, 

जब जी चाहा तोड़ दिया

पत्थर दिल है दुनिया सारी ऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ  

पत्थर दिल है दुनिया सारी, 

तू भी पत्थर हो जा

सो जा, सो जा, सो जा, 

ऐ मेरे दिल सो जा


किसको ज़ख़्म दिखाएगा तू, 

किससे दुखड़ा रोएगा

अँन्धों के आगे रोकर 

अपनी भी आँखे खोएगा

प्यार का सिक्का दुनिया के 

बाज़ारों में नाकाम हुआ

चाँद तेरा अपनी मर्ज़ी से 

दौलत पर नीलाम हुआ

ईद मनाने दे दुनिया को ऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ

ईद मनाने दे दुनिया को, 

तेरा अभी है रोज़ा

सो जा, सो जा, सो जा, 

ऐ मेरे दिल सो जा


क़ायनात भी रोती है, 

जब सारी दुनिया सोती है

रात लिपट कर धरती से 

शबनम के आँसू रोती है

यूँ आँसू बर्बाद न कर तू ऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ

यूँ आँसू बर्बाद न कर तू, 

माला कोई पिरो जा

सो जा, सो जा, सो जा, 

ऐ मेरे दिल सो जा                                  

          ©शशि कान्त सिंह 

इंसानों के हर कर्मों पर उसकी है दिन-रात निगाहें ...

 इंसानों के हर कर्मों पर उसकी है दिन-रात निगाहें

सबकी मंज़िंल एक मगर है, सबकी अपनी-अपनी राहें


राम वही, रहमान वही है, अल्ला और घनश्याम वही है

यीशु कहे कोई गुरू पुकारे, सारे नाम उसी के प्यारे

चाहे कोई नाम जपें हम, मंदिर या मस्जिद में जाएँ

सबकी मंज़िंल एक मगर है, सबकी अपनी-अपनी राहें


बाइबिल और कुरान उसी का, गीता में है ज्ञान उसी का

वेद हो चाहे हो गुरुवाणी, सबमें एक उसी की वाणी

बात वही, बस जुबाँ अलग है, चाहे जिस भाषा में गाएँ

सबकी मंज़िंल एक मगर है, सबकी अपनी-अपनी राहें


प्रेयर भी गुणगान उसी का, आरती और अज़ान उसी का

उसके ही गिरजे-गुरुद्वारे, उसके द्वार बराबर सारे

मज़लूमों पर ज़ुल्म ना कर तू, मत ले दीन-दुखी की आहें

सबकी मंज़िंल एक मगर है, सबकी अपनी-अपनी राहें


धर्म के नाम करे जो दंगे, वो हैं लुच्चे और लफंगे

उनका दीन-ईमान नहीं है, हैवां हैं इंसान नहीं हैं

ऐसा कर्म किए जा जिससे, सभी सुखी हों सब मुस्काएँ

सबकी मंज़िंल एक मगर है, सबकी अपनी-अपनी राहें

                                           ©शशि कान्त सिंह

भगवान हमारे भारत पर..

 CGO Complex, New Delhi,

 8 दिसम्बर, 1995 

 भगवान हमारे भारत पर 

तेरा इतना एहसान रहे

भाई-चारे की वँशी पर 

बस अमन-चैन की तान रहे।। 


गुरूवाणी गूँजे घर-घर में, 

यीशू का हो उपदेश यहाँ

गौतम की सत्य-अहिंसा का 

घर-घर पहुँचे सँदेश यहाँ

मंदिर में आरती हो तेरी, 

मस्जिद में तेरी अज़ान रहे

भाई-चारे की वँशी पर 

बस अमन-चैन की तान रहे।।


तू इन्हें क़सम कुरआन की दे, 

तू इन्हें क़सम दे गीता की

जैसी हो फ़ातिमा की इज़्ज़त 

वैसी हो इज़्ज़त सीता की

माता साहिब के साथ-साथ 

मरियम का भी सम्मान रहे

भाई-चारे की वँशी पर 

बस अमन-चैन की तान रहे।।


जब इक बगिया के फूल सभी, 

तो मज़हब का ये झगड़ा क्यूँ?

भारत माँ की सँतान सभी 

फिर आपस में ये रगड़ा क्यूँ?

क्रिसमस, वैशाखी होली, 

ईद इन सबकी ख़ुशी समान रहे

भाई-चारे की वँशी पर 

बस अमन-चैन की तान रहे।।


हो अमन–चैन जब ख़तरे में 

और चलने लगे ख़ंजर-नेज़े

चल पड़े हुमायूँ रक्षा को, 

जब कर्मवती राखी भेजे

गौहरबानो तब वीर शिवा 

की माँ बनकर मेहमान रहे

भाई-चारे की वँशी पर 

बस अमन-चैन की तान रहे।।     

           ©शशि कान्त सिंह

ग़ज़ल : वजह कुछ और थी उनके क़रीब आने की ...


वजह कुछ और थी उनके क़रीब आने की

वर्ना उनको क्या पड़ी थी मुझे जगाने की


लिपट के बोले अंधेरों से बहुत डरती हूँ

छोड़िए–छोड़िए, ये बातें हैं बहाने की


बात संजीदगी से कहते तो यकीं होता

बात कहते क्या ज़रूरत थी मुस्कुराने की


चलो अच्छा कि खु़द रूठे, ख़ुद मनाने लगे

वर्ना मुझको तो है आदत ही भूल जाने की


इस मुहब्बत में हैं आते कुछ ऐसे पल “गौतम”

लफ़्ज मिलते नहीं उनको जुबां पे लाने की


मैं शराबी नहीं हूँ ये है मुहब्बत का नशा

बात करते हुए आदत है झूम जाने की


वगैर इश्क़ अधूरी है ज़िंदगी “गौतम”

यही है राह ख़ुदा के क़रीब जाने की

                  --- ©शशि कान्त सिंह


ग़ज़ल: जि़ंदगी अपनी कहां गुजरी जि़ंदगी की तरह

ज़िंदगी अपनी कहां गुजरी ज़िंदगी की तरह

चंद लमहे थे हंसीं बाक़ी खुदकुशी की तरह


छुपा के दिल में भला कैसे रखोगे मुझको

मिज़ाज अपना है बेइंतहा खुशी की तरह


जी में आता है कि दुनिया को इक ग़ज़ल कर दें

काश होती ये क़लम जादुई छड़ी की तरह


जी हां, बन सकती है ये धरती भी जन्नत इक दिन

आदमी सीख ले गर जीना आदमी की तरह


इससे ज़्यादा हसीन मौत भला क्या होगी

किसी को चाहना और रहना अजनबी की तरह


ये ज़िंदगी की घड़ी बंद हो गयी होती

तुम्हारा प्यार मगर इसमें बैटरी की तरह


यूँ तो दुनिया में हज़ारों तरह के रिश्ते हैं

मगर नहीं है कोई रिश्ता दोस्ती की तरह

                             ©शशि कान्त सिंह

श्रीगणेश स्तुति : गणपते, विघ्नहर्ता ...

Nasik, 13th August, 2025

गणपते, विघ्नहर्ता, हे शंकर-सुवन!

आपके हम हैं बालक, दया कीजिए 

आज नैय्या हमारी है मझधार में 

कर कृपा, पार इसको लगा दीजिए

गणपते, विघ्नहर्ता, हे शंकर-सुवन...


आप ही तो प्रथम पूज्य हो, हे प्रभो! 

आप ही तो दया सिंधु हो, हे विभो! 

आपको छोड़कर और जाऊं कहां?

आपको छोड़कर चैन पाऊं कहां?

आपके श्रीचरण में है मेरा नमन

गणपते, विघ्नहर्ता, हे शंकर-सुवन...


हे गजानन, शिवानंद, गौरी-सुते!

हे रमा-लाडले, रिद्धि-सिद्धी* पते!

योग, जप, ध्यान, पूजा नहीं जानता

किस तरह वंदना मैं करूं? हे पिता!

अपने आंसू से ही मैं करूं आचमन? 

गणपते, विघ्नहर्ता, हे शंकर-सुवन...

                         ©शशि कान्त सिंह

*यहां गायन में एक मात्र की कमी को पूरा करने के लिए सिद्धि को जानबूझकर सिद्धी लिखा गया है। Poetic licence 


Sunday, 24 August 2025

नज़्म: कजरारे नयन ...

09-07-1986, Prayagraj, U.P.

इन्‍हीं की हरक़तों में जीने-मरने की निशानी है

इन्‍हीं ने दुनिया के इल्‍म-ओ-अदब की ख़ाक छानी है

ये हम पर है कि इनसे किस तरह का काम लेते हैं

इन्‍हीं आंखों में शोले हैं, इन्‍हीं आंखों में पानी है।। 

                                        

ज़िंदगी में कुछ ऐसे भी पल आते हैं

अजनबी से भी रिश्ते निकल आते हैं

जान-पहचान तक जिनसे थी ना कभी

उनकी ख़ातिर भी आँसू निकल आते हैं।।


ऐसे रिश्तों को क्या नाम दूँ मैं भला

राह चलते जो अक़्सर ही बन जाते हैं

फिर दुबारा मुलाक़ात होती नहीं

दिल में दे के वो मीठी चुभन जाते हैं।।

( These 3 अशआर are the introduction of the following Nazm, hence an integral part of the Nazm and not optional. Otherwise one will have to describe the situation to the audience in prose to connect them, and before any performance if the situations are narrated by the singer in prose, I consider it to be the weakness of the Lyricist.)

कजरारे नयन, दे के मीठी चुभन-2 

प्‍यारे-प्यारे नयन, दे के मीठी चुभन  

इस जहाँ में न जाने कहाँ खो गए?

कजरारे नयन, दे के मीठी चुभन... 


नाम है ना पता, कैसे ढूँढू बता -2 

मेरे दिल को चुराकर कहाँ वो गए?

कजरारे नयन, दे के मीठी चुभन...


अजनबी थे मगर जाने पहचाने से

मयकदे में बने पाक़ बुतख़ाने से

अजनबी थे मगर जाने पहचाने से

मयकदे में बने पाक़ बुतख़ाने से

शोख़ सी वो हँसी, दिल में ऐसी धँसी - 2

मार नैना-कटारी कहाँ वो गए?

कजरारे नयन, कारे-कारे नयन...

(Following lines are/stanza is optional. आंखों को इतनी सारी उपमाएं देकर श्रोताओं को मस्ती में भाव-विभोर करने, उन्हें इस नज़्म पर ताल से ताल मिलाकर ताली बजाने के लिए मज़बूर करने के लिए हैं। इन्हें चाहें तो इसी स्थान पर गाएं, या सबसे अंत में भी गा सकते हैं)

उजियारे नयन, मतवारे नयन

रतनारे नयन, हाँ वो प्यारे नयन, 

वो दुलारे नयन, जानमारे नयन

मेरे दिल को चुराकर कहाँ वो गए

कजरारे नयन, दे के मीठी चुभन, 

प्‍यारे-प्यारे नयन, दे के मीठी चुभन -2 

इस जहाँ में न जाने कहाँ खो गए

कजरारे नयन ...


शबनमी से वो लब, जाने बोलेंगे कब 

मेरी चाहत को चाहत से तौलेंगे कब

शबनमी से वो लब, जाने बोलेंगे कब 

मेरी चाहत को चाहत से तौलेंगे कब

दिन ढला, रात में चाँदनी आ गयी 

मेरे ख़्वाबों में वो नाज़नीं आ गयी

देख उनकी झलक, मुँद गयी ये पलक -2

हम जहाँ थे वहीं बेख़बर सो गए

कजरारे नयन, दे के मीठी चुभन...

                     ©शशि कान्त सिंह