जीवन के बीते लम्हों का, कैसे करूं मैं लेखा-जोखा
कुछ कड़वे हैं, कुछ तीखे हैं, कुछ खट्टे हैं कुछ मीठे हैं
किसको भूला दूँ किसको मिटा दूँ,
किससे दिल को शाद करूँ
क्या भूलूँ क्या याद करूँ...
चुनता रहा तिनके जीवन भर, जीता रहा बस उम्मीदों पर
बुन ना पाया नीड़ सुनहरा, हर डाली पर बर्क़ का पहरा
आहें भरूँ या लब सी लूँ मैं, या आँसू बर्बाद करूँ
क्या भूलूँ क्या याद करूँ...
साथ हैं सिर्फ़ ग़मों के साए, फिरता वफ़ा की लाश उठाए
तोड़ दूँ कसमें वो मैं नहीं हूँ, कल तक जो था आज वहीं हूँ
मैं वो नहीं कि भूल के तुमको, दूजा जहाँ आबाद करूँ
क्या भूलूँ क्या याद करूँ...
हमनें निभाई रस्में वफा़ की, तुमको जूनुँ था सिर्फ़ जफ़ा की
मैं था मेरा प्रेम-पुजारी, तुमको थी शक की बीमारी
मैं तो कोई हकीम नहीं जो, शक की दवा ईज़ाद करूँ
क्या भूलूँ क्या याद करूँ...
--- ©शशि कान्त सिंह
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