9 अक्तूबर, 1986, प्रयागराज
जो खिल ना सका वो फूल हूँ मैं,
जो सज ना सका वो साज़ हूँ मैं
जो जल ना सका वो दीप हूँ मैं,
वीराने की आवाज़ हूँ मैं।।
जो खिल ना सका वो फूल हूँ मैं ....
दुनिया से शिकायत क्या करना,
जब टूट गया मेरा सपना
मुझे मौत ने भी ठुकराया है,
जीवन भी हो न सका अपना
इक दर्द हूँ, इक ख़ामोशी हूँ,
इक टूटी हुई परवाज़ हूँ मैं
जो जल ना सका वो दीप हूँ मैं,
वीराने की आवाज़ हूँ मैं।।
मालूम नहीं था दौलत पे,
दिल की दुनिया बिक जाती है
मालूम नहीं था ताज बिना,
मुमताज़ नहीं मिल पाती है
मुमताज़ की याद दफ़न जिसमें,
वो टूटा हुआ इक ताज हूँ मैं
जो जल ना सका वो दीप हूँ मैं,
वीराने की आवाज़ हूँ मैं।।
महफ़िल हो मुबारक तुमको सनम,
तन्हाईयाँ मेरे साथ रहें
दुनिया में नाम मिले तुझको,
रूसवाइयाँ मेरे साथ रहें
जो गीत कभी ना बन पाए,
वो बिखरे हुए अल्फ़ाज़ हूँ मैं
जो जल ना सका वो दीप हूँ मैं,
वीराने की आवाज़ हूँ मैं।।
ख़्वाबों का महल था टूट गया,
जन्मों का साथी रूठ गया
सोने-चाँदी से टकरा के,
इक दिल का खिलौना टूट गया
इक भूला-बिसरा कल हूँ मैं,
इक बीतने वाला आज हूँ मैं
जो जल ना सका वो दीप हूँ मैं,
वीराने की आवाज़ हूँ मैं।।
--- ©शशि कान्त सिंह
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