Monday, 25 August 2025

इंसानों के हर कर्मों पर उसकी है दिन-रात निगाहें ...

 इंसानों के हर कर्मों पर उसकी है दिन-रात निगाहें

सबकी मंज़िंल एक मगर है, सबकी अपनी-अपनी राहें


राम वही, रहमान वही है, अल्ला और घनश्याम वही है

यीशु कहे कोई गुरू पुकारे, सारे नाम उसी के प्यारे

चाहे कोई नाम जपें हम, मंदिर या मस्जिद में जाएँ

सबकी मंज़िंल एक मगर है, सबकी अपनी-अपनी राहें


बाइबिल और कुरान उसी का, गीता में है ज्ञान उसी का

वेद हो चाहे हो गुरुवाणी, सबमें एक उसी की वाणी

बात वही, बस जुबाँ अलग है, चाहे जिस भाषा में गाएँ

सबकी मंज़िंल एक मगर है, सबकी अपनी-अपनी राहें


प्रेयर भी गुणगान उसी का, आरती और अज़ान उसी का

उसके ही गिरजे-गुरुद्वारे, उसके द्वार बराबर सारे

मज़लूमों पर ज़ुल्म ना कर तू, मत ले दीन-दुखी की आहें

सबकी मंज़िंल एक मगर है, सबकी अपनी-अपनी राहें


धर्म के नाम करे जो दंगे, वो हैं लुच्चे और लफंगे

उनका दीन-ईमान नहीं है, हैवां हैं इंसान नहीं हैं

ऐसा कर्म किए जा जिससे, सभी सुखी हों सब मुस्काएँ

सबकी मंज़िंल एक मगर है, सबकी अपनी-अपनी राहें

                                           ©शशि कान्त सिंह

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