Nasik, 13th August, 2025
गणपते, विघ्नहर्ता, हे शंकर-सुवन!
आपके हम हैं बालक, दया कीजिए
आज नैय्या हमारी है मझधार में
कर कृपा, पार इसको लगा दीजिए
गणपते, विघ्नहर्ता, हे शंकर-सुवन...
आप ही तो प्रथम पूज्य हो, हे प्रभो!
आप ही तो दया सिंधु हो, हे विभो!
आपको छोड़कर और जाऊं कहां?
आपको छोड़कर चैन पाऊं कहां?
आपके श्रीचरण में है मेरा नमन
गणपते, विघ्नहर्ता, हे शंकर-सुवन...
हे गजानन, शिवानंद, गौरी-सुते!
हे रमा-लाडले, रिद्धि-सिद्धी* पते!
योग, जप, ध्यान, पूजा नहीं जानता
किस तरह वंदना मैं करूं? हे पिता!
अपने आंसू से ही मैं करूं आचमन?
गणपते, विघ्नहर्ता, हे शंकर-सुवन...
©शशि कान्त सिंह
*यहां गायन में एक मात्र की कमी को पूरा करने के लिए सिद्धि को जानबूझकर सिद्धी लिखा गया है। Poetic licence
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