9 अप्रैल, 1997, नयी दिल्ली
किसको-किसको प्यार करूँ मैं,
किससे-किससे नैना चार
किसको-किसको दिल दूँ अपना,
मैं तन्हा आशिक़ हैं हज़ार
किसको-किसको प्यार करूँ मैं,
किससे-किससे नैना चार
किसको-किसको दिल दूँ अपना,
मैं तन्हा आशिक़ हैं हज़ार
हिरनी एक, हज़ार शिकारी,
ऐसा तो देखा ही नहीं
एक शमा, इतने परवाने,
बुझ ना जाए शमा कहीं
कोई तीरे-नज़र चलाए,
कोई मारे नैन-कटार
किसको-किसको दिल दूँ अपना,
मैं तन्हा आशिक़ हैं हज़ार
खिलने से पहले ही क्यूँ कर
कली मसल दी जाती है
रात सेज पर बिछती है,
पर सुबह बदल दी जाती है
लाखों बीमारों के दरम्यां
मैं बेचारी एक अनार
किसको-किसको दिल दूँ अपना,
मैं तन्हा आशिक़ हैं हज़ार
©शशि कान्त सिंह
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