20 जून, 1980, सरौनी, जौनपुर
सतसइया के दोहरे, ज्यों नाविक के तीर।
देखन में छोटे लगे, घाव करें गंभीर।।
डांग डिंग डांग डिंग डांग, डिंगडां डिंगडां - 4
छोटी ना समझो हमको पिया
डांग डिंग डांग डिंग डांग, डिंगडां डिंगडां
छोटी ना समझो हमको पिया
डांग डिंग डांग डिंग डांग, डिंगडां डिंगडां
मेले में सब जैसे झूले हिंडोला
डांग डिंग डांग डिंग डांग, डिंगडां डिंगडां
सावन में सब जैसे झूले हैं झूला
डांग डिंग डांग डिंग डांग, डिंगडां डिंगडां
मेले में सब जैसे झूले हिंडोला
सावन में सब जैसे झूले हैं झूला
वैसे झूला दूँगी, ढिनचक, ढिनचक, ढिनचक
वैसे झूला दूँगी तुमको पिया
छोटी ना समझो हमको पिया
पुरवा में लहराए फूलों की क्यारी
आँधी में हिलती है अमवा की डारी
वैसे हिला दूंगी तुमको पिया
छोटी ना समझो हमको पिया
गोदिया में गोरी जो बच्चा खिलाए
छतिया लगाके जो उसको सुलाए
वैसे सुला दूंगी तुमको पिया
छोटी ना समझो हमको पिया
गर्मी के छूते घी ज्यों पिघलता
घी जो पिघलकर के थाली में गिरता
वैसे पिघलता दूंगी तुमको पिया
छोटी ना समझो हमको पिया
कहने को बाकी है कितनी है बतिया
पर बातों में आज बीते ना रतिया
बुझो तो क्या दूंगी तुमको पिया
छोटी ना समझो हमको पिया
--- ©शशि कान्त सिंह
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