वजह कुछ और थी उनके क़रीब आने की
वर्ना उनको क्या पड़ी थी मुझे जगाने की
लिपट के बोले अंधेरों से बहुत डरती हूँ
छोड़िए–छोड़िए, ये बातें हैं बहाने की
बात संजीदगी से कहते तो यकीं होता
बात कहते क्या ज़रूरत थी मुस्कुराने की
चलो अच्छा कि खु़द रूठे, ख़ुद मनाने लगे
वर्ना मुझको तो है आदत ही भूल जाने की
इस मुहब्बत में हैं आते कुछ ऐसे पल “गौतम”
लफ़्ज मिलते नहीं उनको जुबां पे लाने की
मैं शराबी नहीं हूँ ये है मुहब्बत का नशा
बात करते हुए आदत है झूम जाने की
वगैर इश्क़ अधूरी है ज़िंदगी “गौतम”
यही है राह ख़ुदा के क़रीब जाने की
--- ©शशि कान्त सिंह
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