Monday, 25 August 2025

जनम-जनम की आस...

 27 नवंबर, 1995, Palam, New Delhi 

जनम-जनम की आस यही है, युग-युग की अभिलाषा है

प्रेम की बस दों घूँट पिला दो प्यार का पँछी प्यासा है 

अरे प्यार का पँछी प्यासा है, अरे प्यार का पँछी प्यासा है


बिना प्रेम के गॉड, गुरू, अल्ला या राम नहीं मिलते

जब तक सच्‍चा प्रेम ना मिलता दिल के फूल नहीं खिलते

बिना प्रेम के जग सूना है, चारों ओर निराशा है

प्रेम की बस दों घूँट पिला दो प्यार का पँछी प्यासा है

 

मंदिर-मस्जि़द में जाने की मुझको कहाँ जरूरत है

मेरा दिल ही इक मंदिर है उसमें तेरी मूरत है

बंद आँख से देखूँ तुमको यही एक अभिलाषा है

प्रेम की बस दों घूँट पिला दो प्यार का पँक्षी प्यासा है 


प्रेम ही जप है, प्रेम ही तप है, प्रेम ही सच्ची पूजा है

प्रेम की जग का परम तत्त्व है, और न कोई दूजा है

होंठ ना हिलें बात हो जाए-2, यही प्रेम की भाषा है

प्रेम की बस दों घूँट पिला दो प्यार का पँछी प्यासा है 

                                   ©शशि कान्त सिंह

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