09-07-1986, Prayagraj, U.P.
इन्हीं की हरक़तों में जीने-मरने की निशानी है
इन्हीं ने दुनिया के इल्म-ओ-अदब की ख़ाक छानी है
ये हम पर है कि इनसे किस तरह का काम लेते हैं
इन्हीं आंखों में शोले हैं, इन्हीं आंखों में पानी है।।
ज़िंदगी में कुछ ऐसे भी पल आते हैं
अजनबी से भी रिश्ते निकल आते हैं
जान-पहचान तक जिनसे थी ना कभी
उनकी ख़ातिर भी आँसू निकल आते हैं।।
ऐसे रिश्तों को क्या नाम दूँ मैं भला
राह चलते जो अक़्सर ही बन जाते हैं
फिर दुबारा मुलाक़ात होती नहीं
दिल में दे के वो मीठी चुभन जाते हैं।।
( These 3 अशआर are the introduction of the following Nazm, hence an integral part of the Nazm and not optional. Otherwise one will have to describe the situation to the audience in prose to connect them, and before any performance if the situations are narrated by the singer in prose, I consider it to be the weakness of the Lyricist.)
कजरारे नयन, दे के मीठी चुभन-2
प्यारे-प्यारे नयन, दे के मीठी चुभन
इस जहाँ में न जाने कहाँ खो गए?
कजरारे नयन, दे के मीठी चुभन...
नाम है ना पता, कैसे ढूँढू बता -2
मेरे दिल को चुराकर कहाँ वो गए?
कजरारे नयन, दे के मीठी चुभन...
अजनबी थे मगर जाने पहचाने से
मयकदे में बने पाक़ बुतख़ाने से
अजनबी थे मगर जाने पहचाने से
मयकदे में बने पाक़ बुतख़ाने से
शोख़ सी वो हँसी, दिल में ऐसी धँसी - 2
मार नैना-कटारी कहाँ वो गए?
कजरारे नयन, कारे-कारे नयन...
(Following lines are/stanza is optional. आंखों को इतनी सारी उपमाएं देकर श्रोताओं को मस्ती में भाव-विभोर करने, उन्हें इस नज़्म पर ताल से ताल मिलाकर ताली बजाने के लिए मज़बूर करने के लिए हैं। इन्हें चाहें तो इसी स्थान पर गाएं, या सबसे अंत में भी गा सकते हैं)
उजियारे नयन, मतवारे नयन
रतनारे नयन, हाँ वो प्यारे नयन,
वो दुलारे नयन, जानमारे नयन
मेरे दिल को चुराकर कहाँ वो गए
कजरारे नयन, दे के मीठी चुभन,
प्यारे-प्यारे नयन, दे के मीठी चुभन -2
इस जहाँ में न जाने कहाँ खो गए
कजरारे नयन ...
शबनमी से वो लब, जाने बोलेंगे कब
मेरी चाहत को चाहत से तौलेंगे कब
शबनमी से वो लब, जाने बोलेंगे कब
मेरी चाहत को चाहत से तौलेंगे कब
दिन ढला, रात में चाँदनी आ गयी
मेरे ख़्वाबों में वो नाज़नीं आ गयी
देख उनकी झलक, मुँद गयी ये पलक -2
हम जहाँ थे वहीं बेख़बर सो गए
कजरारे नयन, दे के मीठी चुभन...
©शशि कान्त सिंह
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