Monday, 25 August 2025

मेरे गाँव की मिट्टी ..

 9 जुलाई, 2025, कसलखंड, पनवेल

मेरे गाँव की मिट्टी ये तो बता -

तुझसे कैसे तोड़ूँ नाता?

जो रूखी-सूखी भी मिलती,

तो गाँव छोड़ के क्यों जाता?

मेरे गाँव की मिट्टी ये तो बता,

तुझसे कैसे तोड़ूँ नाता...


पीपल की छैयाँ रूठ गई

तो पनघट ने भी दम तोड़ा,

पायल की रुनझुन सिसक रही

जाने किसने घुँघरू तोड़ा 

पनघट पर जमघट का मंज़र 

खोजे भी नज़र नहीं आता 

जो रूखी-सूखी भी मिलती 

तो गाँव छोड़कर क्यों जाता।


दांतों को नसीब नहीं रोटी

हाथों को कोई काम नहीं

पैरों की नहीं मंज़िंल कोई

मेहनत का कोई ईनाम नहीं

प्यासे इस दश्त की सुधि लेने

कोई भी अब्र नहीं आता

जो रूखी-सूखी भी मिलती 

तो गाँव छोड़कर क्यों जाता।


देते थे जो खेत कभी रोटी 

अब उनमें भूख ही उगती है

खलिहानों की वो वो गौरैया 

शमशान पे दाना चुगती है 

कोयल की मीठी तानों पर 

पपिहा मल्हार नहीं गाता 

जो रूखी-सूखी भी मिलती 

तो गाँव छोड़कर क्यों जाता। 

बागों की हरियाली खोई 

मातम पसरा चौपालों पर 

बगिया के जो माली थे, उनकी 

तस्वीर टंगी दीवारों पर

रोता है सुदामा सिसकी ले 

पर कोई कृष्ण नहीं आता 

जो रूखी-सूखी भी मिलती 

तो गाँव छोड़कर क्यों जाता।

               ©शशि कान्त सिंह

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