23 मार्च, 1978, वटवृक्ष, सरौनी
पुरवइया ने, डडम डम डडम डम - 2
पुरवइया ने पनघट पे छेड़ी सरगम
बजी तेरी पायलिया छम-छम-छम - 2
छम-छम-छम, छम-छम-छम,
छम-छम-छम, छम-छम-छम,
छम-छम-छम, छम-छम-छम,
छम-छम-छम, छम- छम-छम,
तेरी जुल्मी अदाओं ने ढाया सितम
मुफ़्त में जाँ गंवायी रे लुट गए हम
पुरवइया ने पनघट पे छेड़ी सरगम
बजी तेरी पायलिया छम-छम-छम - 2
तेरी अलकों से मौसम ने अँगड़ाई ली- 2
तेरी पलकों ने रूत में शरारत भरी
तेरी बिंदिया ने, डडम डम डडम डम
तेरी बिंदिया ने नींदिया उड़ाई सनम
बजी तेरी पायलिया छम-छम-छम
पुरवइया ने पनघट पे छेड़ी सरगम
बजी तेरी पायलिया छम-छम-छम।।
तेरे ख़्वाबों में डूबा हुआ हूँ दिन-रैन
तेरे कजरारे नैनों ने छीना है चैन
तेरे होंठ हैं गुलाब, हुआ भौंरे को भरम
बजी तेरी पायलिया छम-छम-छम।।
तुम्हें इतना बताना तो ज़रूरी है
तेरे बिना मेरी ज़िंदगी अधूरी है
मैं हूँ रात का मुसाफिर तू है चाँद पूनम
बजी तेरी पायलिया छम-छम-छम।।
--- ©शशि कान्त सिंह
No comments:
Post a Comment