Monday, 25 August 2025

पुरवइया ने पनघट पे ...

 23 मार्च, 1978, वटवृक्ष, सरौनी 

पुरवइया ने, डडम डम डडम डम - 2 

पुरवइया ने पनघट पे छेड़ी सरगम 

बजी तेरी पायलिया छम-छम-छम - 2

छम-छम-छम, छम-छम-छम, 

छम-छम-छम, छम-छम-छम,

छम-छम-छम, छम-छम-छम, 

छम-छम-छम, छम- छम-छम,

तेरी जुल्मी अदाओं ने ढाया सितम

मुफ़्त में जाँ गंवायी रे लुट गए हम

पुरवइया ने पनघट पे छेड़ी सरगम 

बजी तेरी पायलिया छम-छम-छम - 2


तेरी अलकों से मौसम ने अँगड़ाई ली- 2 

तेरी पलकों ने रूत में शरारत भरी 

तेरी बिंदिया ने, डडम डम डडम डम

तेरी बिंदिया ने नींदिया उड़ाई सनम 

 बजी तेरी पायलिया छम-छम-छम

पुरवइया ने पनघट पे छेड़ी सरगम 

बजी तेरी पायलिया छम-छम-छम।।


तेरे ख़्वाबों में डूबा हुआ हूँ दिन-रैन

तेरे कजरारे नैनों ने छीना है चैन

तेरे होंठ हैं गुलाब, हुआ भौंरे को भरम

बजी तेरी पायलिया छम-छम-छम।।


तुम्हें इतना बताना तो ज़रूरी है

तेरे बिना मेरी ज़िंदगी अधूरी है

मैं हूँ रात का मुसाफिर तू है चाँद पूनम

बजी तेरी पायलिया छम-छम-छम।।

                --- ©शशि कान्त सिंह

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