Monday, 25 August 2025

समय की धार में उम्र की मिश्री ...

समय की धार में उम्र की मिश्री, घुलती जाए घुलती जाए

सबको ही घुलना है इसमें, आज घुले या कल घुल जाए


कल तक तू था गोद किसी के, आज है तेरी गोद में कोई

पर तू इतना जान ले पगले, तू ना किसी का, तेरा ना कोई

सारे रिश्ते-नाते झूठे, वक़्त पड़े कोई काम ना आए

समय की धार में उम्र की मिश्री, घुलती जाए घुलती जाए


ख़्वाब सुनहरे, स्वप्न रुपहले, महल-दो महले सब हैं माया

ख़ाली हाथ चले जाना है, साथ ना कुछ कोई ले जा पाया

बस वो जीना ही जीना है, जो औरों के काम भी आए

समय की धार में उम्र की मिश्री, घुलती जाए घुलती जाए


छाप-तिलक ये कंठी माला, इससे ना कुछ होने वाला

सिज़्दे-नमाज़, भजन, जप-तप से ईश्वर ख़ुश ना होने वाला

पोंछता जा दुखियों के आँसू, तेरा जन्म सफल हो जाए

समय की धार में उम्र की मिश्री, घुलती जाए घुलती जाए


बचपन तूने खेल में खोया, और जवानी रंगरेलियों में

आज बुढ़ापे में भी क्यों तू, भटके माया की गलियों में

अब से भी तू राह पे आ जा, तो शायद मंज़िल मिल जाए

समय की धार में उम्र की मिश्री, घुलती जाए घुलती जाए

                                             ©शशि कान्त सिंह

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