Monday, 25 August 2025

नैना तरस गए पर तुम ना आए ..

 27 दिसंबर, 1988, इलाहाबाद

कितने युगों तक दिल ने तुझको पुकारा

यादों की शम्मा लेकर, बाट निहारा

कितनी दुआएँ माँगी हाथ उठाए

नैना तरस गए पर तुम ना आए।।


जाड़ों में क़िस्मत में पड़ते हैं पाले

फागुन में जी जलता है पड़ते हैं छाले

सावन भी आए तो बस नैन भिगाए

नैना तरस गए पर तुम ना आए।।


पतझड़ तो आते पर ना आती बहारें

सपनों में भी ना मिलते दरस तुम्हारे

कितने जनम से हम हैं आस लगाए

नैना तरस गए पर तुम ना आए।।


साथी रे पँछी बनके अब तो तू आ जा

आख़िरी पल है अब तो दरस दिखा जा

साँसों के धागे कभी टूट ना जाए

नैना तरस गए पर तुम ना आए।।

             --- ©शशि कान्त सिंह

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